छत्तीसगढ़ में आज भी जीवित है सिंधु घाटी सभ्यता की मूर्ति बनाने की कला, पुश्तैनी हुनर को आगे बढ़ा रहे कलाकार | The art of sculpting of the Indus Valley civilization still survives in Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में आज भी जीवित है सिंधु घाटी सभ्यता की मूर्ति बनाने की कला, पुश्तैनी हुनर को आगे बढ़ा रहे कलाकार

छत्तीसगढ़ में आज भी जीवित है सिंधु घाटी सभ्यता की मूर्ति बनाने की कला, पुश्तैनी हुनर को आगे बढ़ा रहे कलाकार

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:26 PM IST
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Published Date: September 24, 2020 3:12 pm IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में हजारों साल पहले की मूर्ति बनाने की कला आज भी जीवित है। यहाँ के शिल्पकार धातुओं में बारीक दस्तकारी कर अनोखी कलाकृतियाँ तैयार करते हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान मूर्ति बनाने की ये कला प्रचलित थी। छत्तीसगढ़ में मूर्ति बनाने की इस विधि को घड़वा और ढोकरा शिल्प के नाम से जाना जाता है।

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प्रदेश की जनजातियों के द्वारा तैयार की गयी कलाकृतियां देश के साथ ही विदेशों में भी प्रसिद्ध है, और यहाँ के कलाकारों को इसके लिए कई राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। ऐसे ही एक युवा कलाकार हैं पूरण झोरका जो की रायगढ़ जिले के शिल्पग्राम एकताल के निवासी हैं। पूरण अपनी ढोकरा शिल्प के पुश्तैनी हुनर को आगे बढ़ा रहे हैं। प्रसिद्ध गायक कैलाश खेर ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से पूरण की तारीफ की है। पूरण बताते हैं कि ढोकरा शिल्प मनमोहक कलाकृतियाँ बनाने में बहुत मेहनत लगती है। एक मूर्ति बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है। मिट्टी का ढांचा तैयार कर उस पर मोम का लेप लगाया जाता है। जिसके बाद मोम पर बारीक कलाकृतियाँ उकेरी जाती है। इसे भट्टी में तपाया जाता है और धातु पिघला कर डाली जाती है। मोम के पिघलने के बाद धातु उसका स्थान ले लेता है, जिसे काफी देर ठंडा होने दिया जाता है और इस तरह कोई कलाकृति तैयार होती है।

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छत्तीसगढ़ में बस्तर और रायगढ़ जिले के जनजाति इस शिल्प कला में पारंगत हैं। ढोकरा शिल्प कला में अधिकतर जनजाति संस्कृति पर आधारित कलाकृतियाँ बनाते हैं, जो देवी देवताओं की मूर्तियों के अलावा लोक जीवन से जुड़ी वस्तुओं पर केन्द्रित होते हैं।

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