श्रीराम ने भी की थी दशानन की प्रशंसा, भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दिया था 'चंद्रहास' | Shriram also praised Dashaanan Pleased with devotion, Lord Shiva gave 'Chandrahas'

श्रीराम ने भी की थी दशानन की प्रशंसा, भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दिया था ‘चंद्रहास’

श्रीराम ने भी की थी दशानन की प्रशंसा, भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दिया था 'चंद्रहास'

Edited By :  
Modified Date: November 29, 2022 / 08:47 PM IST
,
Published Date: June 2, 2020 9:34 am IST

धर्म। दुनिया रावण को आततायी और अत्याचारी राक्षसराज के रूप में जानती है। एक ऐसे राक्षसराज..जिसने हमेशा लोगों पर जुल्म ढाए। ये सही भी है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता..कि ताकत के नशे में चूर रावण ने देवताओं-दानवों और पृथ्वीलोक के दूसरे राजाओं के राज्यों पर आक्रमण किया..और उन्हें अपने सामने झुकने के लिए मजबूर किया। लेकिन केवल यही एकमात्र सच नहीं है। तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। जितनी सच्चाई इस बात में है कि रावण में कई अवगुण थे…उतना ही सच ये भी है कि रावण में गुणों की भी कमी नहीं थी। लेकिन दुनिया के सामने उसकेगुण कभी सामने नहीं आ पाए…या फिर उसके अवगुणों के आगे लोगों ने उस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी।

ये भी पढ़ें- ‘खेल रत्न’ से सम्मानित होने वाले चौथे खिलाड़ी होंगे रोहित शर्मा, इश…

अत्याचारी होने के साथ-साथ रावण प्रकांड पंडित भी था। वो समस्त वेदों और पुराणों का ज्ञाता महापंडितथा। इस बात के कई उदाहरण हैं…जब रावण ने अपनी विद्वता से दूसरों को चकित कर दिया। उसके पांडित्य का लोहा उसके दुश्मन भी मानते थे।रावण भगवान शिव का भी अनन्य भक्त था। रावण की भक्ति तथा स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे चंद्रहास नामक खड़ग भी दिया था। पंडित होने के साथ-साथ वो अदम्य शक्तिशाली भी था। ये सही है कि तपस्याओं के बल पर उसने कुछ असाधारण शक्तियां हासिल कर ली थी,लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है…कि वो जन्म से ही बलशाली था। उसकी गिनती दुर्धुष वीरों में की जाती है। रावण का दशानन नाम भी इसलिए पड़ा। ये नाम उसे खुद भगवान राम ने दिया था।

ये भी पढ़ें- टेस्ट में इतिहास रचने के बाद 17 साल के पाक गेंदबाज ने विराट कोहली क…

दशानन दशों दिशाओं पर अधिकार रखने वाले को कहा जाता है। अपनी शक्ति के बल पर रावण ने दसों दिशाओं पर अधिकार जमा लिया था। भगवान राम से लड़ाईकरते-करते जब रावण मारा गया…तो विभीषण उसकी मौत पर विलाप करने लगे। इस पर श्रीराम ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा..कि रावण असमर्थ होकर नहीं मरा है। उसने प्रचंड पराक्रम का प्रदर्शन किया है। इस प्रकार क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए मरने वालों के लिए शोक नहीं करना चाहिए। ऐसा नहीं है है कि रावण को अपने परिणाम के बारे में पता नहीं था। वो अच्छी तरह से जानता है राम से लड़ाई मोल लेने पर उसका मरना तय है, लेकिन श्रीराम के हाथों मृत्यु प्राप्त कर उसे सद्गति मिलेगी। सच ये भी है कि राम अगर आज मर्यादापुरुषोत्तम के रूप में पूजे जाते हैं…तो केवल रावण की वजह से। राम के चरित्र को उज्जवल बनाने में सबसे अधिक योगदान रावण का ही है। अगर रावण न होता तो श्री राम लाखो-करोड़ों हिंदुओं के आराध्यदेव होकर उनके दिलों में नहीं बसते। भगवान राम के रावण पर विजय को अधर्म पर धर्म की जीत कहा जाता है। लेकिन अगर अधर्म ही ना रहे..तो धर्म किस पर विजय हासिल करेगा ? महाज्ञानी और अनेक गुणों का स्वामी होने के बाद भी दशानन की सबसे बड़ी खामी ये थी कि वो अभिमानी था। सत्ता के मद में चूर होकर वह देवों, ऋषियों, यक्षों और गंधर्वों पर तरह-तरह के अत्याचार करता था। उसका यही अवगुण उसके तमाम गुणों पर भारी पड़ गया, उसका यही मद उसे ले डूबा…और जिस कीर्ति का वो हकदार था..वो उसे नहीं मिली।

 
Flowers