भोपाल: मध्यप्रदेश में नगर सरकार को लेकर एक बार फिर संशय के बादल मंडराने लगे हैं। बीते करीब डेढ़ साल से 407 निकाय प्रशासकों के भरोसे चल रहे हैं। माना जा रहा था कि इस महीने यहां चुनावों की घोषणा हो सकती है लेकिन ग्वालियर और इंदौर हाईकोर्ट के आरक्षण को लेकर स्टे देने के बाद जल्द चुनाव की संभावना कम हो गई है। नगरीय प्रशासन मंत्री ने भी ऐसे ही संकेत दिए हैं। जबकि कांग्रेस का आरोप है कि सरकार जानबूझकर चुनाव टाल रही है।
पहले हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ और फिर इंदौर हाईकोर्ट ने आरक्षण में रोटेशन प्रकिया का पालन नहीं करने पर स्टे दे दिया है। कोर्ट के इस आदेश से नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों के चुनाव पर संकट आ गया है, क्योंकि आरक्षण की अधिसूचना पर रोक होने से चुनाव कराना संभव नहीं है। ग्वालियर हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि 79 नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायतों को अनुसूचति जाति व जनजाति के लिए आरक्षित किया है। जैसे कि मुरैना और उज्जैन नगर निगम के महापौर का पद साल 2014 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित था, लेकिन 2020 में भी इन सीटों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखा है। नगर पालिका और नगर पंचायतों में भी ऐसा ही किया गया है, जबकि 2020 के चुनाव में रोटेशन प्रणाली का पालन करते हुए बदलाव करना था। रोटेशन प्रक्रिया का पालन नहीं होने से अन्य वर्ग के लोग चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं और ये लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है। कोर्ट से स्टे आने के बाद अब सरकार भी मान रही है कि अदालती दांवपेंच में फंसने के कारण नगरीय निकाय के चुनाव में देरी हो सकती है।
वैसे तो निर्वाचन आयोग और सरकार की तरफ से बार बार दावा किया गया कि चुनाव को लेकर तैयारी पूरी है, लेकिन अब ये मामला सियासत से ज्यादा कानून में उलझ गया है। कानून के मुताबिक संविधान की धारा 243 बी में नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों के आरक्षण के रोटेशन की व्यवस्था दी गई है। नगर पालिका अधिनयम की धारा 29 बी के तहत रोटेशन का प्रावधान किया गया है। एक बार जो सीट आरक्षित हो जाती है, रोटेशन प्रक्रिया अपनाते हुए बदलाव आना चाहिए।
वैसे एक साल पहले सत्ता गवां चुकी कांग्रेस निकाय चुनावों के लिए पूरे दमखम के साथ तैयारी रह रही थी। पार्टी की रणनीति अगले विधानसभा चुनाव से पहले निकाय और पंचायत चुनाव दमदारी से लड़ने की थी ताकि संगठन को मजबूत किया जा सके लेकिन चुनावों में देरी की आहट के बाद पार्टी अब सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है। निकाय चुनावों में देरी से सबसे ज्यादा निराश वो नेता है जो इन चुनावों से अपनी राजनीति शुरु करना चाहते थे और इसके लिए प्रचार भी शुरु कर दिया था।
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