भोपालः मुरैना में जहरीली शराब से हुई मौत के 10 दिन बाद ही प्रदेश में शराब पर राजनीति हो रही है। ज्यादा घमासान बीजेपी में ही है। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा जहरीली शराब रोकने के लिए दुकानें बढाने की पैरवी कर रहे हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शराबबंदी की वकालत कर रही है। इस बीच आबकारी आयुक्त ने कलेक्टर्स को पत्र लिखकर ज्यादा दुकानें खोलने के प्रस्ताव भी मांगे लेकिन 24 घंटे में ही उसे वापस भी ले लिया।
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मध्यप्रदेश की सियासत बीते दो दिन से शराब के इर्द गिर्द सिमट गई है। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा नई दुकानें खोलने की वकालत करते हैं, तो मुख्यमंत्री कहते हैं ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शराबबंदी की पैरवी कर रही है। सवाल ये है कि क्या शराबबंदी के जरिए नेता अपनी सियासी पिच तैयार कर रहे है? क्या इस मुद्दे के जरिए बीजेपी में खुद का वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश है? क्या इस मुद्दे को उछाल कर लोगों के मन की बात जानने की कोशिश की जा रही है? वैसे शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री अब भले ही मौन हो लेकिन नरोत्तम मिश्रा और उमा भारती दोनों की अलग अलग राय है।
वैसे कांग्रेस भी शराब पर हो रही इस सियासत में कूद गई है। कांग्रेस के विधायक लक्ष्मण सिंह ने ट्वीट किया है कि इससे राजस्व की होगी हानि, लेना पड़ेगा और कर्ज। ये एक उद्योग है, जो देता है रोजगार और राजस्व…आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के लिए जरूरी है। वैसे सियासत से ज्यादा जरुरी है कि शराब से जुड़े आंकड़ों को समझा जाए।
प्रदेश में 2544 देसी और 1061 अंग्रेजी शराब की दुकानें है, जिनसें हर साल करीब 10,500 करोड़ की आय होती है। पिछले कार्यकाल में शिवराज सरकार ने 1427 दुकानों को हाईवे से हटाकर पीछे कर दिया था जबकि नर्मदा किनारे की 58 दुकानें बंद कर दी गई थी।
शराब दुकान बढ़ाने का समर्थन करने वाले राजस्थान, गोवा का उदाहरण देते हैं तो विरोधी गुजरात, बिहार, नागालैंड का लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल ये हैं कि कोरोना काल में जब प्रदेश की अर्थव्वस्था मजबूत न हो राजस्व का इतना बड़ा जरिया कैसे बंद किया जा सकता है।
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