बिहार: भारत के महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का गुरुवार को 74 साल की आयु में निधन हो गया। बताया जा रहा है कि वशिष्ठ नारायण लंबे समय से सरकार की नजरअंदाजी के चलते गुमनामी की जिंदगी गुजार रहे थे और लंबे समय से बीमार भी थे। वशिष्ठ नारायण सिंह का शुक्रवार को उनके गृहग्राम बसंतपुर में अंतिम संस्कार किया जाएगा। इससे पहले पटना के कुल्हड़िया कॉम्पलेक्स स्थित उनके भाई केघर पर अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव शरीर रखा गया था, जहां सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें श्रद्धांजलि समर्पित की।
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बताया जा रहा है कि वशिष्ठ नारायण सिंह लंबे समय से बीमार थे, कल सुबह उनकी तबीयत बिगड़ने के बाद उनके भाई उन्हें पीएमसीएच लेकर गए थे। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। अस्पताल प्रबंधन ने मृत्यु प्रमाण पत्र देकर पल्ला झाड़ लिया, शव वाहन तक मुहैया नहीं कराया। अस्पताल के बाहर स्ट्रेचर पर रखे वशिष्ठ नारायण सिंह का पार्थिव शरीर का फोटो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।
वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार में 2 अप्रैल, 1946 को हुआ था। भले ही जन्म बिहार में हुआ था, लेकिन उनकी पहचान पूरी दुनिया में थी। 1958 में नेतरहाट की परीक्षा में वह टॉपर थे। 1963 में हायर सेकेंड्री की परीक्षा में भी टॉप किया। इनका रिकॉर्ड और प्रतिभा देखते हुए 1965 में पटना विश्वविद्यालय ने एक साल में ही इन्हें बीएससी ऑनर्स की डिग्री दे दी थी। इसके लिए खास तौर पर नियम बदला गया।
बिहार विभूति वशिष्ठ नारायण सिंह ने अलबर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी थी। कहा जाता है कि उनका दिमाग कंप्यूटर की जरह चलता था, लेकिन सिजोफ्रेनिया बीमारी की चपेट में आ जाने से उनकी प्रतिभा का भरपूर लाभ नहीं लिया जा सका। जानकारी के अनुसार 1973-74 से बीमारी की चपेट में आ गए थे। बताया जाता है कि उन्होंने अपने छात्र जीवन में ही कॉलेज के प्रोफेसरों को गणित के सवालों पर चुनौती देना शुरू कर दिया था। गलत पढ़ाने पर पकड़ लेते थे और टोक भी देते थे। अपनी प्रतिभा के दम पर वे इतने मशहूर हुए कि लोग उन्हें वैज्ञानिक जी के नाम से जानने लगे। कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद कैलोफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली ने उन्हें अमेरिका बुलाया। 965 में वशिष्ठ नारायण अमेरिका चले गए। वहां 1969 में पीएचडी की डिग्री ली। पीएचडी के लिए वशिष्ठ नारायण सिंह ने ‘द पीस ऑफ स्पेस थ्योरी’ नाम से शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने आइंस्टीन की थ्योरी ‘सापेक्षता के सिद्धांत’ को चुनौती दी। पीएचडी करने के बाद वह वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगे।
वशिष्ठ नारायण सिंंह ने कुछ दिनों तक नासा में भी काम किया। इस दौरान उन्होंने यह प्रमाणित किया कि उनका दिमा कंप्यूटर की तरह काम करता है। नासा में काम करने के दौरान उनका एक किस्सा बहुत फेमस हुआ था। दरसअल नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए। वशिष्ठ नारायण ने मैनुअल कैलकुलेशन किया। कहते हैं जब कंप्यूटर्स ठीक किए गए और डेटा निकाला गया तो पता चला कि कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन वही था जो ”वैज्ञानिक जी” ने किया था।
कुछ समय बाद वैज्ञनिक जी भारत लौट आए थे। कहते हें उन्हें अपने वतन और मिट्टी की याद सताने लगी थी। 1971 में वशिष्ठ बाबू अमेरिका से भारत लौट गए। यहां IIT कानपुर, IIT बंबई, ISI कलकत्ता सहित तमाम नामी-गिरामी संस्थानों में छात्रों को पढ़ाया और उन्हें दिशा दिखाई।
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गणित से उनका लगाव आखिरी वक्त तक बना रहा। मौत से कुछ दिन पहले एक सामाजिक कार्यकर्ता उनसे डायरी और कलम लेकर मिलने गया। कलम लेकर वशिष्ठ बाबू ने उनकी हथेली पर गणित का फार्मूला लिखना शुरू कर दिया। जब वह अमेरिका से लौटे थे तो 10 बक्सों में किताबें लेकर आए थे। उन्हें बांसुरी बजाना भी अच्छा लगता था। बिहार के फिल्मकार प्रकाश झा ने हाल ही में घोषणा की थी कि वे वशिष्ठ बाबू पर फिल्म बनाएंगे।
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