निर्मल हुई नर्मदा, श्रद्धालुओं में फिर जागा उत्साह, देखें मां की महिमा | Refined Narmada Faith again awakened among devotees See mother's glory

निर्मल हुई नर्मदा, श्रद्धालुओं में फिर जागा उत्साह, देखें मां की महिमा

निर्मल हुई नर्मदा, श्रद्धालुओं में फिर जागा उत्साह, देखें मां की महिमा

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:20 PM IST
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Published Date: May 10, 2020 8:07 am IST

अमरकंटक। नर्मदा नदी, कहते हैं कि नर्मदा नदी इतनी पवित्र है कि इसके दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति होती है। कोरोना संकट के चलते अमरकंटक से निकलने वाली नर्मदा भी प्रदूषण से मुक्त हुई है और निर्मल नजर आ रही है।

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मां नर्मदा की पूजन करने वाले लोग नर्मदा के इस रुप को देखकर अभिभूत हैं। अमरकंटक में नर्मदा के उद्गम स्थान पर पुजारी पूजन के लिए पहुंचते हैं। जो भी इक्का-दुक्का लोग पूजन के लिए नर्मदा के उद्गम स्थान पर पहुंच रहे हैं, नर्मदा के इस रुप को देखकर बेहद अभिभूत हैं।

इसके पहले अमरकंटक से लेकर पूरे मध्यप्रदेश में कई स्थानों पर नर्मदा के प्रदूषण को लेकर काफी चिंताजनक हालात होते जा रहे थे। करीब दो महीने के लॉकडाउन में अमरकंटक में पर्यटकों की आवाजाही भी बंद है, ऐसे में नर्मदा नदी अपने उदगम में तो एकदम साफ स्वच्छ नजर आ रही ही है। नर्मदा के विभिन्न तटों पर यही हालात नजर आ रहे हैं, जिसको लेकर नर्मदा में आस्था रखने वालों और प्रकृति प्रेमियों में काफी उत्साह है। नर्मदा में प्रदूषण तो खत्म हुआ है ही साथ ही जलस्तर में भी बढोत्तरी देखी जा रही है।

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अमरकंटक से पांच किलोमीटर आगे कपिलधारा और दूधधारा में भी नर्मदा के प्रवाह में इजाफा देखा जा रहा है। जबकि पिछले साल अमरकंटक से कपिलधारा पहुंचते पहुंचते नर्मदा की धारा सूख गई थी। लॉकडाउन खत्म होने के बाद अमरकंटक आने वाले पर्यटकों में नर्मदा नदी के इस स्वच्छ निर्मल रूप को देखकर निश्चित ही सुकून मिलेगा, पर लोगों को अब ये बात समझनी होगी कि प्रदूषण से नर्मदा को बचाने के लिये इंसानों की भूमिका ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।

देखें मां नर्मदा क्यों हैं इतनी विशेष-

नर्मदा, समूचे विश्व में दिव्य व रहस्यमयी नदी है,इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड में किया है। इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक (जिला शहडोल, मध्यप्रदेश जबलपुर-बिलासपुर रेल लाईन-उडिसा मध्यप्रदेश ककी सीमा पर) के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा12 वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में 10,000 दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है :’-

मां नर्मदा को प्राप्त वरदान- प्रलय में भी नाश न होने वाली । विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी प्रसिद्ध है। हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित । विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है। कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है। जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है। मेरे (नर्मदा) के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें।

सभी देवता, ऋषि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त की। दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर) ऋषियों द्वारा तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा १२ वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की। तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के) तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। इस आदित्येश्वर तीर्थ पर हमारा आश्रम अपने भक्तों के अनुष्ठान करता है।

 
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