मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) गठबंधन की सरकार बनने की चर्चाओं के बीच शनिवार सुबह राजभवन में देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर सभी को आश्चर्य चकित कर दिया। इस गठबंधन के बारे में किसी को भनक तक नही लगी थी। अब इनके सामने विधानसभा में बहुमत साबित करना एक बड़ी परीक्षा होगी।
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भाजपा और एनसीपी सरकार को 30 नवंबर तक बहुमत साबित करना है। वहीं एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का कहना है कि भाजपा के साथ जाने का फैसला अजित पवार का है न कि पार्टी का। राज्य विधानसभा के लिए 21 अक्टूबर को चुनाव हुए थे जिनका 24 अक्टूबर को फैसला आया था। इसमें एनसीपी के खाते में 54 सीटें गई थीं। अब यह देखना होगी कि एनसीपी के कितने विधायक पार्टी से अलग होकर अजित के साथ जाएंगे।
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महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटे हैं। जिसमें से भाजपा को 105, शिवसेना को 56, कांग्रेस को 44 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 54 सीटों पर जीत मिली है। इसके अलावा बहुजन विकास अघाड़ी के खाते में तीन सीटें गई हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमिन, प्रहर जनशक्ति पार्टी और समाजवादी पार्टी को दो-दो सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं राज्यभर से 13 निर्दलीय उम्मीदवारों को चुना गया है।
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महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटें हैं। किसी भी पार्टी को सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए 145 का जादुई आंकड़ा चाहिए। चुनाव परिणाम में भाजपा के पास 105 और एनसीपी को 54 सीटें मिली हैं। यदि दोनों पार्टियों के आंकड़े को मिला दिया जाए तो यह 159 होता है जो बहुमत से ज्यादा है। लेकिन एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का कहना है कि भाजपा के साथ सरकार बनाना गलत है। ऐसे में भाजपा को बहुमत साबित करने में परेशानी हो सकती है।
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राज्य के ताजा घटनाक्रम पर नजर डाली जाए जो एनसीपी की राह से अलग जाकर भाजपा के साथ सरकार बनाने वाले अजित पवार के पास जरूरी संख्या मौजूद है। शरद पवार का साफ कहना है कि भाजपा के साथ जाना अजित का व्यक्तिगत निर्णय है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा को एनसीपी के सभी 54 विधायकों का समर्थन नहीं मिलने वाला है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि अजित के पास एनसीपी के आधे से ज्यादा विधायकों का समर्थन है। वहीं भाजपा दावा कर रही है कि उसे 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन है।
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