अंबिकापुर, सरगुजा। जिन्हें राष्ट्रपति ने बसाया और उन्हें आशियाना दिया वो अब बेघर होने की कगार पर है, उनकी जमीन छिन रही हैं। उन्हें धोखे रख जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है। और ये सारा खेल चल रहा है स्टांप के भरोसे। ऐसा नहीं है कि ये खेल कोई आज या कल शुरू हुआ है।सालों से खेल जारी है लेकिन प्रशासन है कि देखने के अलावा और कोई कदम उठाने को तैयार नहीं।
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सरगुजा में जमीनों की गड़बड़ी का खेल धड़ल्ले से जारी है । ना कोई नियम ना कायदा। यहां तक कि जिन जमीनों को सौदा हो नहीं सकता वो जमीनें भी दलालों के चंगुल में फंसी गई है।आलम ये है कि स्टाम्प पर जमीन का एग्रीमेंट हो जाता है। लाखों की जमीन का कौड़ियों के भाव सौदा हो जाता है। और तो और जिन पंडो जनजाति के लोगो की जमीन कोई खरीद नहीं सकता उसको भी दलालों की नजर लग गई।जमीन की गड़बड़ी का ये मामला चल रहा है सरगुजा जिला मुख्यालय से लगे ग्राम बडनीझरिया में। यहां पैसों की जरूरत के कारण पंडो की जमीन का कौड़ियों के दाम में सौदा कर दिया गया।
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सबसे दिलचस्प बात ये की पंडो जनजाति के लोगो की जमीन की रजिस्ट्री नही हो सकती ऐसे में जमीन का एग्रीमेंट स्टाम्प पर किया जा रहा है..आलम ये कि स्टाम्प पर कुछ डिसमिल जमीन का सौदा कर कई गुना ज्यादा जमीन पर कब्जा कर लिया गया। कई पंडो का तो ये भी कहना है कि उन्हें सौदे में तय रकम आज तक नही मिल सकी।
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आबको जानकर और भी हैरानी होगी कि इस गड़बड़ी का पूरा खेल खेल रहे हैं सरकारी नुमाइंदे। इसमें रेंजर, पटवारी, आरआई, वनविभाग और पुलिस विभाग के कर्मचारी है। जब पंडो समाज के लोगो ने पड़ताल की तो पता चला कि इनमें से ज्यादातर लोगों ने करार नामा कर पंडो की जमीन पर घर भी बनवा लिया और अब पंडो लोगों पर ही जमीन खाली करने का दबाव बना रहे हैं। जमीन खरीदी करने वाले लोगों में ज्यादातर आदिवासी वर्ग और कुछ सामान्य वर्ग के लोग भी शामिल है। इधर जब आईबीसी 24 ने इस मामले को लेकर कलेक्टर से बात की तो उन्होंने भी इसे एक बड़ी साजिश का हिस्सा बताया और जांच कर कार्रवाई की बात कही।
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अकेले बडनीझरिया गाव में करीब 50 से ज्यादा ऐसे मामले है जिनमे सैकड़ो एकड़ जमीन इसी तरह फर्जीवाड़े की भेंट चढ़ चुकी है,, .आपको बता दें कि 1952 में अपने सरगुजा प्रवास के दौरान राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने पंडो जनजाति के लोगो को बसाया था वनग्राम होने के कारण इस इलाके में रह रहे पंडो को वनाधिकार पत्र भी जारी किया गया था मगर इन भोले भाले विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगो की जमीन पर जमीन माफियाओं की नजर लग गई है।