नईदिल्ली। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों की माने तो, ग्रामीण और शहरी इलाकों में आधुनिक गर्भनिरोधक के इस्तेमाल को लेकर लोगों की समझ काफी विकसित हुई है., परिवार नियोजन की मांग में सुधार हुआ है और महिलाओं द्वारा पैदा किए बच्चों की औसत संख्या में भी कमी आई है। विशेषज्ञों के अनुसार ये आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि देश में ’जनसंख्या विस्फोट’ के डर का कोई आधार नहीं है, साथ ही अब केवल दो बच्चे पैदा करने की योजना लाने की आवश्यकता भी नहीं है।
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बता दें कि सरकार समय समय पर जनसंख्या नियंत्रण के उपायों पर जोर देती रही है, इसके पहले पीएम मोदी ने 2019 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में जनसंख्या नियंत्रण को देशभक्ति के तौर पर पेश किया था, फिर 2020 में भी पीएम मोदी ने महिलाओं के लिए शादी की उम्र में संशोधन पर जोर दिया। जिसे अप्रत्यक्ष रूप से जनसंख्या नियंत्रण करने की कोशिश ही माना जा रहा है।
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नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट के पहले पार्ट में 17 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों का रिकॉर्ड डेटा है., इंटरनेशनल नॉन प्रॉफिट पॉपुलेशन का डेटा एनालिसिस बताता है कि 17 में से 14 राज्यों के ’टोटल फर्टिलिटी रेट’ में गिरावट आई है., इन राज्यों में प्रति महिला बच्चों का औसत 2.1 या इससे भी कम है। रिपोर्ट की मानें तो आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और बिहार जैसे राज्यों में 2015-16 की तुलना में कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल काफी बढ़ा है।
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