राजिम का पुन्नी मेला ही नहीं 'मामा-भांजा' मंदिर भी है विश्व प्रसिद्ध, जानिए क्या है मंदिर की मान्यता | Not only the Punni fair of Rajim, 'Mama-Bhanja' temple is also world famous, know what is the recognition of the temple

राजिम का पुन्नी मेला ही नहीं ‘मामा-भांजा’ मंदिर भी है विश्व प्रसिद्ध, जानिए क्या है मंदिर की मान्यता

राजिम का पुन्नी मेला ही नहीं 'मामा-भांजा' मंदिर भी है विश्व प्रसिद्ध, जानिए क्या है मंदिर की मान्यता

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Modified Date: November 29, 2022 / 07:58 PM IST
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Published Date: February 14, 2021 11:21 am IST

रायपुर: देश और दुनिया की अपनी एक अलग पहचान होती है। लोग कुछ जगहों को उनकी परंपरा और रिति रिवाज के नाम से जानते हैं, तो कुछ जगहों की अपनी विषम परिस्थितियों के चलते विशेष पहचान है। छत्तीसगढ़ की भी अपनी पंरपराओं और मान्यताओं को लेकर पूरे भारत में एक अलग पहचान है। इनमें छत्तीसगढ़ की मंदाकनी महानदी, छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम, छत्तीसगढ़ की संस्कृति सहित अन्य कई चीजें हैं। राजिम का ‘पुन्नी मेला’ पूरे देश में मशहूर है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजिम से भगवान राम का अलग ही नाता है। आप यह तो जानते ही होंगे कि छत्तीसगढ़ को माता कौशिल्या का मायका माना जाता है और भगवान श्री राम को प्रदेश का भांजा के तौर पर मानते हैं। तो चलिए आज हम आपको राजिम स्थित ‘मामा-भांजा मंदिर की कहानी और मान्यता के बारे में…

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आपको बातते चलें कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां भांजे को देवता की तरह पूजा जाता है और यहां मामा, भांजे का पैर छूते हैं। इसके पीछे भी मान्यता है कि भगवान राम प्रदेश के भांजे हैं और मामा भगवान से पैर कैसे पड़वा सकते हैं। इसलिए आज भी पूरे प्रदेश में मामा अपने भांजे से पैर पड़वाना पाप मानता है और खुद भांजे के पैर छूते हैं। एक मान्यता ऐसी भी है कि एक ही नाव में सवार होकर मामा और भांजे को नदी पार नहीं करना चाहिए। साथ ही एक ही गाड़ी में मामा-भांजे की यात्रा को छत्तीसगढ़ में मना किया जाता है।

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राजिम में मामा-भांजा का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। बताया जा रहा है कि यहां स्थित भगवान कुलेश्वर महादेव नवमी सताब्दी में बनाया गया था। कुलेश्वर महादेव के मंदिर को भांचा का मंदिर भी कहा जाता है, क्यों कि इस मंदिर के निर्माण में भगवान राम ने भी भूमिका निभाई थी। बताया जाता है कि कुलेश्वर महादेव भगवान राम के कुल देवता हैं। वनवास के दौरान जब माता सीता चित्रोत्पला यानि महानदी पार करने वाली थी, इससे पहले उन्होंने कुल देवता की पूजा करने की मंशा जाहिर की। लेकिन आस-पास भगवान शंकर का कोई मंदिर नहीं होने के चलते उन्होंने रेत की मूर्ति बनाई और उसकी पूजा कीं।

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कुलेश्वर महादेव का मंदिर महानदी, पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर स्थित है। वहीं, नदी के तट पर भगवान रजीव लोचन का मंदिर है। स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार पहले के समय में बारिश के दिनों में तीनों नदियों में बाढ़ आता था। नदियों का पानी कुलेश्वर महादेव तक आ जाता था और मंदिर डूबने लगता था। मंदिर जब डूबने लगे तो एक आवाज आती थी कि ”मैं डूब रहा हूं मामा मुझे बचाव’ तो दूसरी ओर से एक और आवाज आती थी कि ‘आप नहीं डूबेंगे भांजे’। इसके मामा ने नदियों को जल स्तर कम करने का आदेश दिया, जिसके बाद नदियों का पानी कम हो गया। इसी के चलते लोगों की मान्यता है कि मामा-भांजे को एक साथ यात्रा नहीं करना चाहिए, ताकि एक डूबे तो दूसरा उसे बचा सके।

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