रायपुर। हम आइने में जब खुद को निहारते हैं तो निहारते ही रह जाते हैं। दिन में कई बार आईना देखते हैं। दुनिया शायद ही ऐसा कोई इंसान होगा जो खुद को खूबसूरत ना मानता हो। लेकिन हमारी ये देह, ये चेहरा, त्वचा, बाल, सारे अंग हमें कैसे मिल गए हैं। हर अंग का ये संतुलन किसने दिया है। सामान्य मनुष्य को सुनाई देता है, दिखाई देता है, हम बोल पाते हैं, कभी सोचा है इसके लिए किसने कोशिश की है। जब पहले दिन पता चलता है कि आप गर्भ में हैं तबसे लेकर उसकी अंतिम सांस तक वह आपको अपना ही अंग समझती है, उसे लगता है कि आज भी आप उस नाड़ी से बंधे हुए हैं जिसे डॉक्टर ने कैंची से काट दिया था। वो आज भी मानती है कि आप उसी नाड़ी से भोजन और ऊर्जा पाते हैं जो उसके अंग में पैवस्त है। उसके ही खून से ही आपके शरीर की सुर्खी है। वो हमेशा आप में है। आप चाहो या ना चाहो, आप मानो या ना मानो, आप महसूस करो या ना करो।
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आपने महसूस किया होगा जब हम घर में होते हैं तो क्या करते हैं, हो सकता है आप ज्यादातर समय टीवी देखते हों,रेडियो सुनते हों, मोबाइल पर व्यस्त रहते हों,इन सबके बाद आप सबसे ज्यादा बार घर के किस हिस्से में जाते हैं। दिमाग पर ज्यादा ज़ोर ना डालिए, यदि इंसान घर पर होता है तो वो सबसे अधिक बार किचिन में जाता है। कुछ काम हो या ना हो, भूख- प्यास लगी हो या न हो, तब भी हम रसोईघर के आसपास ही मंडराते रहते हैं। कभी सोचा हो या नहीं लेकिन इसका बड़ा लॉजिक है, दरअसल यही वो जगह है जहां मां सबसे ज्यादा समय बिताती है। वो वहां ना भी हो तो भी रहती है। और हम ना चाहे तब भी हमारे कदम उस ओर जाते ही हैं। यदि कभी गौर ना किया तो अब करके जरुर देखिएगा।
पलटता रहता हूं चेहरों की किताबों के पन्ने ( FB)
लेकिन सुकूं झुर्रियों से लदा मुखड़ा देखकर आता है।
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आपने ये भी महसूस किया होगा जब हम घर लौटते हैं, कुछ खाते- पीते हैं। यहां- वहां उठाईधरी भी कर लेते हैं, पिताजी से हूं- हां भी हो जाती है, पर इस बीच मां ना दिखे तो गुस्सा आ जाता है। कई बार तो, कई बार नहीं हर बार घर में घुसते ही हम सबसे पहले मां चिल्लाते हैं। मां, मम्मी, मम्मा पर जब जवाब नहीं मिलता तो थोड़ा खीझ भी जाते हैं। मम्मी को तो बस मंदिर दिखता है, गईं होगीं पड़ोस वाली आंटी के साथ, थोड़ा बड़बड़ाएंगे और जैसे ही मां आ जाएगी तो फिर पूरा गुस्सा उन पर उड़ेल देंगे। मां भी जानती है बच्चे उसके बिना नहीं रह सकते, तो हंस के टाल देती है और फिर आपको आपके गुस्से सहित मना लेती है ।
देखकर बच्चों का गुस्सा डर सी जाती है वो..
खुद का गुस्सा जाने कहां ले जाती है वो..
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सोशल मीडिया के इस युग में आपने कई वीडियो देखे होंगे, कहीं कोई चिड़िया अपने बच्चों को दाना खिला रही होगी तो कहीं अपने अंडों को बचाने के लिए बड़ी सी मशीन के आगे चट्टान सी खड़ी हो गई होगी, गाय अपने बछड़े को दूध पिलाने के लिए अपनी “सार” तक कहीं से भी कूद- फांद कर आ जाती है। हम इंसान जरा ज्यादा वैज्ञानिकता को मानते हैं। लेकिन आप भी गौर करिएगा कैसे मां खुद बासा खाकर आपके लिए ताजा ही बनाती है। यू तो शांत रहता है, पर आप पर उठाई गई हर अंगुली का डटकर विरोध करती है। वो आपके लिए अपने पति और आपके पिता से भी लड़ लेती है। वो मां है ममता ही जगाती है।
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जब हम मां पर लिखे कई बड़े- बड़े लेख देखते हैं,सभी में मां को महिमा मंडित करते हुए देखते हैं। सब कहते हैं मां ईश्वर के समान है, धरती पर मां- बाप ही भगवान हैं । लेकिन जरा और विस्तार से जाएं तो हमारी ही संस्कृति बताती है मां तो ईश्वर से भी बढ़कर है। अब देखिए ना हर देवी के साथ मां लगाते ही कैसे उनके प्रति सम्मान और अपनापन आ जाता है। जगत जननी मां, धरती मां, गंगा मां आदि-आदि। मां शब्द लगते ही ईश्वर का मान और बढ़ जाता है। मां की इस महानता को कोई नकार नहीं सकता है।
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क्या है मां
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गर्मी में ठंडे मटके सी है मां
बारिश में छाते की छांव है मां
सर्दी में कम्बल की कोख है मां
दुख में धीरज का सागर है मां
सुख में ठिठकती ठौर है मां
गाने में सुरों का सार है मां
फलों में रस की लार है मां
रोटी में चिपड़ा घी है मां
बस्ते में बैठी टिफिन है मां
चोटी में लिपटी रिबिन है मां
अंतरिक्ष में उड़ती ओजोन है मां
सांसों में दौड़ती जान है मां
खुद के दुख से अंजान है मां
हां..इस धरती पर भगवान है मां
इस धरती पर भगवान है मां….
बतंगड़ः हम दो, हमारे कितने….?
2 weeks ago