धर्म। मध्यप्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है, यह मध्यप्रदेश के अनुपपुर जिले में मैकाल पर्वत श्रृंखला की वादियों से अवतरित हुईं हैं। अमरकंटक भारत के पवित्र स्थलों में गिना जाता है। नर्मदा और सोन नदियों का यह उद्गम आदिकाल से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है । नर्मदा का उद्गम यहां एक कुंड से और सोनभद्रा के पर्वत शिखर से हुआ है। मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकाल कन्या भी कहते हैं। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है। कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है, जिसका अर्थ है—पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली।
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अमरकंटक में एक सरोवर में स्थित प्राचीन शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहा जाता हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं। नर्मदा नदी अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर प्रमुख रुप से मध्यप्रदेश और गुजरात से होकर नर्मदा क़रीब 1310 किमी का प्रवाह पथ तय कर भरौंच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान हैं, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है। पुराणों के मुताबिक नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश होता है। पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ स्थान मौजूद हैं, जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इनमें कपिलधारा,शुक्लतीर्थ, मांधाता, भेड़ाघाट, शूलपाणि, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं।
नर्मदा उद्गम स्थल परिसर में कई मंदिर हैं, मां नर्मदा एवं शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, मां अन्नपूर्णा मंदिर, गुरु गोरखनाथ मदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंशेश्वर महादेव मंदिर, माँ दुर्गा मंदिर, शिव परिवार सिध्देश्वर महादेव मंदिर, श्री राधाकृष्ण मंदिर, ग्यारह रूद्र मंदिर आदि।
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नर्मदा नदी की महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है। इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकंटक के मैकाल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा 12 वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचकोशी क्षेत्र में हजारों वर्षों तक तपस्या करके भगवान भोलेनाथ से ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं हैं ।
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ऐसा कहा जाता है कि माता नर्मदा को ये वरदान प्राप्त है कि प्रलय में भी उनका नाश नहीं होगा। उन्हें ये वरदान प्राप्त है कि उने दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं को स्ना का पुण्य और मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। नर्मदा के तट पर हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूज्य होता है। विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है।
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ऐसा माना जाता है कि सभी देवता, ऋषि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियां प्राप्त की। इस तीर्थ पर ऋषियों ने अनेक वर्षो तक तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर नर्मदा 12 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई, तब ऋषियों ने मां नर्मदा की स्तुति की। तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।
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