जम्मू कश्मीर। प्रदेश से आर्टिकल 370 हटने के बाद अब यहां की राजनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है। खबर यह है कि अलगाववादी नेता अब मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो सकते हैं। क्योंकि उन्हे अपनी राजनीति का भविष्य अंधेरे में नजर आने लगा है और उन्हे इस बात की चिंता सताने लगी है। यही कारण है कि अलगाववादी नेता अब मुख्यधारा की राजनीति करने पर विचार कर रहे हैं।
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एक युवा राजनीतिज्ञ के के शब्दों में ‘अब जब नई दिल्ली ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 के तहत दिए अधिकार छीन लिए हैं, उसके बाद अब हम भी देश के अन्य राज्यों के समान हो गए हैं। ऐसे में अब राजनैतिक पार्टियों को गवर्नेंस के मुद्दे पर फोकस करना होगा ना कि अलगाव और स्पेशल स्टेटस और स्वायत्ता के मुद्दे पर। आज राज्य की सभी राजनैतिक पार्टियों का एजेंडा असंगत हो गया है।’
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भारत और पाकिस्तान दोनों से फंड लेने वाले हुर्रियत नेताओं की युवा पीढ़ी अब मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो सकती है। लोगों को इस बात का एहसास है कि अलगाव की राजनीति ने कश्मीरी लोगों का भला नहीं किया। नेशनल कॉन्फ्रेंस से जुड़े सूत्रों के अनुसार, पार्टी अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला राज्य को फिर से विशेषाधिकार दिलाने के लिए संघर्ष कर सकते हैं। हालांकि उनके बेटे और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला इसके प्रति थोड़े अनिच्छुक दिखाई दे रहे हैं।
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इनके अलावा पीडीपी भी फिलहाल अपने विकल्पों पर विचार कर रही है। सरकार ने जमात ए इस्लामी पर पिछले काफी समय से शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। जो कि पीडीपी के उभार के लिए अहम थी। ऐसे में पीडीपी की ताकत काफी घटी है। फिलहाल पार्टी अपने अगले कदम पर विचार-विमर्श कर रही है।
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कश्मीर के राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि कश्मीर की राजनीति में अब सबसे बड़े किंगमेकर पंचायत सदस्य और स्थानीय निकाय के नेता बन सकते हैं। कश्मीर के कई युवा और प्रगतिशील नेताओं ने हालिया पंचायत चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। ऐसे में आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति को नई दिशा मिल सकती है।