भोपाल : मध्यप्रदेश में साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने सियासी पिच पर बल्लेबाजी शुरु कर दी है। कांग्रेस ने महंगाई और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में सरकार की सड़क से सदन तक घेराबंदी कर दी है। अगले महीने विधानसभा का मानसून सत्र होना है। कांग्रेस ने अपने तेवर सड़कों पर दिखा दिया है। अब बारी मॉनसून सत्र की है। कांग्रेस ने चार दिनों के सत्र के लिए पेट्रोल डीजल घरेलू गैस की बढ़ती कीमतों, नेमावर में आदिवासी परिवार के नरसंहार सरीखे तमाम मुद्दों पर सवाल लगाए हैं। लेकिन इसके पहले कांग्रेस की कोशिश है कि पेट्रोल डीजल पर लगने वाले टैक्स को कम करने के लिए सरकार पर जोरदार दबाव बनाया जाए।
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दरअसल कांग्रेस को ये मालूम है कि महंगाई ही वो रास्ता है जिसके जरिए हर घर में पहुंच बनाई जा सकती है। आंकड़ों के हिसाब से अगले पिछले तीन महीनों की तुलना करें तो मई में पेट्रोल के दाम 98.59 के आसपास थे जो अब 110 तक पहुंच गए है। डीजल 89 रुपए प्रति लीटर था जो अब 98 के आसपास है। 90 से 100 रुपए किलो के हिसाब से बिकने वाली तुअर दाल में भी 10 फीसदी का इजाफा हुआ है और ये 100 से 110 के बीच बिक रही है। सरसों के तेल में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है तीन महीने पहले 100 रुपए लीटर बिकने वाला सरसों का तेल अब 170 तक पहुंच गए हैं। जबकि तीन महीने में मूंगफली का तेल 120 रुपए लीटर से 180 तक पहुंच चुका है। हालांकि कांग्रेस का सबसे ज्यादा जोर पेट्रोल-डीजल और सिलेंडर की बढती कीमतों को लेकर है।
पेट्रोल-डीजल के बढ़ हुए दामों को लेकर कहा जाता है कि इनकी कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार के आधार पर तय होती है। आंकडे देखे तो मध्यप्रदेश में पेट्रोल के ऊपर 33 फीसदी वैट लगता है। हर एक लीटर के ऊपर 4.50 रुपये सेस लगता है जबकि डीजल पर 23 फीसदी वैट के अलावा 3 रुपये प्रति लीटर सेस देना पड़ता है। अब यदि पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों में केंद्र की हिस्सेदारी देखे तो केंद्र हर लीटर पेट्रोल पर 1.40 फीसदी एक्साइज ड्यूटी, अतिरिक्त विशेष एक्साइज ड्यूटी 11 रुपये, एग्रीकल्चर और इंफ्रास्ट्रकचर के लिए 2.50 रुपये सेस वसूलती है। चूंकि अब केंद्र और राज्य दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार है लिहाजा सवाल उनसे ही पूछे जा रहे हैं।
कोरोना काल के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर तो असर पड़ा ही है घर का बजट भी बिगड़ गया है। जाहिर है ये ऐसा मुद्दा है जिसे कांग्रेस हर मोर्चे पर भुनाना चाहती है जबकि बीजेपी आंकड़ों के जरिए खुद का बचाव करने में लगी है।