भोपाल: देश के विकास की रफ़्तार के साथ दूसरे राज्यों के मुकाबले मध्य प्रदेश की रफ़्तार पिछड़ती नजर आ रही है। मध्यप्रदेश को अन्य राज्यों की अपेक्षा व्यवस्था और नीतियों में सुधार की जरूरत है। प्रदेश में पहले की अपेक्षा कई क्षेत्रों में सुधार होने की जगह गिरावट आई है। ये खुलासा भी केंद्र सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग नीति आयोग की रिपोर्ट में हुआ है। देश में मध्यप्रदेश तीन अंकों की गिरावट के साथ 14 वें से 17 वें पायदान पर पहुंच गया है। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर सामाजिक, शिक्षा और आर्थिक मोर्चे पर दूसरे राज्यों से क्यों पिछड़ा मध्यप्रदेश?
मध्य प्रदेश में विकास के दावों के पैमाने पर तीन पायदान नीचे चला गया है। केंद्र सरकार के नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रदेश के विकास की रफ्तार सबसे कम इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में रही, जहां इस श्रेणी में तय 10 अंकों में प्रदेश को महज 3.4 अंक ही मिले। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधार प्रदेश के सामने चुनौती बनी हुई है। पहली से लेकर 8वीं तक बीच प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या में गिरावट आई है। इसके साथ 10वीं कक्षा से पहले पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ी है। लिहाजा एजुकेशन रैकिंग भी बढ़ने के वजाए नीचे की ओर पहुंची। संतोष इस बात का है कि प्रदेश का सूचकांक पिछले साल के 58 के मुकाबले 4 अंक बढ़कर 62 हो गया है, लेकिन ये रैकिंग और व्यवस्था सुधार के तमाम दावों के साथ रैकिंग को बरकरार नहीं रख पाया।
नीति आयोग की रिपोर्ट ने मध्य प्रदेश में विकास के दावे करने वाली सरकार के काम काज पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है यह रिपोर्ट सरकार के लिए भी चिंता का विषय है लिहाजा सरकार अब नीतियों में बदलाव की बात कह रही है वंही कांग्रेस इस रिपोर्ट को सरकार के विकास के दावे की हकीकत करार दे रही है!
कुल मिलाकर विकास के 9 मानकों पर बेहतर प्रदर्शन करने वाला मध्यप्रदेश 7 क्षेत्रों में फिसड्डी साबित हुआ, जिसकी वजह से उसकी रैंकिंग 3 पायदान नीचे गिरी। ऐसे में अब नीति धारकों और जिम्मेदारों को ये समझना होगा कि बीती गलतियों को सुधार सफलता हासिल की जाती है। नीति आयोग की ये रिपोर्ट भी प्रदेश में नीतियों और निर्णयों में सुधार की जरूरत को बयां करती है।
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