संतान प्राप्ति के बाद भी नष्ट नहीं हुआ था कुंती का कन्याभाव, सूर्यदेव के आगमन के आज भी देखे जा सकते हैं प्रमाण, देखें बेहद रोचक पौराणिक कथा | Kunti's virility was not destroyed even after having children Evidence of Suryadev's arrival can be seen even today

संतान प्राप्ति के बाद भी नष्ट नहीं हुआ था कुंती का कन्याभाव, सूर्यदेव के आगमन के आज भी देखे जा सकते हैं प्रमाण, देखें बेहद रोचक पौराणिक कथा

संतान प्राप्ति के बाद भी नष्ट नहीं हुआ था कुंती का कन्याभाव, सूर्यदेव के आगमन के आज भी देखे जा सकते हैं प्रमाण, देखें बेहद रोचक पौराणिक कथा

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:16 PM IST
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Published Date: January 3, 2021 12:28 pm IST

धर्म। मुरैना से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित  कुंतलपुर पांडवों की माता कुंती का मायका और दानवीर कर्ण की जन्मस्थली है। महाभारत कालीन का ये नगर चंबल की घाटियों के बीच है और आज भी ये फल-फूल रहा है। ये नगर  5 हजार साल पहले की सभ्यता को अपने आंचल में समेटे हुए है।

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चंबल नदी के पास एक बड़े इलाके में सम्राट शूरसेन का अधिकार था । शूरसेन की एक पुत्री थी । जिसका नाम था पृथा । यही पृथा आगे चलकर कुंती के नाम पहचानी जाने लगीं।  कुंती वासुदेव की बहन और श्रीकृष्ण की बुआ थीं । राजा शूरसेन के एक मित्र राजा थे कुंतीभोज । कुंतीभोज नि:संतान थे, ऐसे में राजा शूरसेन ने अपनी बेटी पृथा को कुंतीभोज के हाथों सौंप दिया । इस तरह राजकुमारी पृथा राजा कुंतीभोज की बेटी कुंती बन गई । कुंतीभोज का साम्राज्य कुंतलपुरी महाभारत काल में कांतिपुर नाम से विख्यात था । इसी कुंतलपुर में कुंती का लालन-पालन हुआ ।

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कुंती को बचपन से ही ऋषि-मुनियों में अगाध आस्था थी । एक बार महर्षि दुर्वासा महाराज कुंतीभोज के यहां आए और बरसात के चार महीनों तक ठहरे । दुर्वासा ऋषि कुंती की निष्ठा और सेवा से बेहद प्रसन्न हुए और जाते समय कुंती को वरदान दिया कि संतान कामना के लिए वो जिस देवता का आव्हान करेंगी.. वो देवता साक्षात प्रकट हो जाएंगे और संतान प्राप्ति के बाद भी वरदान के प्रभाव से उनका कन्याभाव नष्ट नहीं होगा ।

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दुर्वासा ऋषि के जाने के बाद जिज्ञासावश कुंती ने सूर्य भगवान का आह्वान किया । आव्हान करते ही घोड़ों की टाप सुनाई देने लगी…और रथ की गड़गड़ाहट से चारों दिशाएं गूंज उठी । परम तेज के साथ सूर्य देव प्रकट हो गए  । जिसके बाद कुंती के गर्भ से सूर्य पुत्र कर्ण को जन्म हुआ । अविवाहित कुंती ने लोकलाज के भय से कर्ण को इसी अश्व नदी में बहा दिया । सूर्यदेव के कुंतलपुर में आने के प्रमाण आज मौजूद हैं। नदी के किनारे चट्टानों पर घोड़ों की पदचापों की निशान साफ-साफ देखे जा सकते हैं।

 
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