नई दिल्ली। कुंभ मेला.. हिंदू धर्म में इसका खास महत्व है। कुंभ स्नान को मोक्ष्यदायिनी भी कहते हैं। आज हम आपको हर 12 वर्षों में लगने वाले कुंभ मेले और उससे जुड़ी मान्यता के बारे में बताने जा रहे हैं।
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भारत में कुंभ मेले का खासा महत्व है। हर 12 वर्षों में लगने वाला कुंभ मेला देश में महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है। कई दिनों तक चलने वाले कुंभ मेले में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आकर यहां स्नान करते हैं। कुंभ मेला देश में चार जगहों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगता है। इस बार कुंभ मेला धर्म नगरी हरिद्वार में होगा। इसकी महत्ता को देखते हुए यूनेस्को भारत के कुंभ मेले को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के तौर पर मान्यता दे चुका है। कुंभ का मतलब कलश होता है। इसीलिए इसे उत्सव का कलश भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसे अमृत का कलश भी कहा जाता है।
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मान्यता
कहा जाता है कि एक बार देवों से उनकी शक्तियां छीन ली गई थी। अपनी ताकत फिर से हासिल करने के लिए वे असुरों के साथ सागर का मंथन कर अमृत निकालने के लिए सहमत हुए। देवों और असुरों में सहमति बनी कि दोनों आपस में अमृत की बराबर हिस्सेदारी करेंगे। दुर्भाग्यवश, देवों और असुरों में सहमति नहीं बनी और दोनों 12 साल तक एक दूसरे से लड़े। इसी दौरान गरुण अमृत से भरे कलश को लेकर उड़ गया। माना जाता है कि कलश में से अमृत की बूंदें चार जगहों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिर गई। इसीलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला लगता आया है।
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ये हैं स्नान की प्रमुख तिथियां
14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन
11 फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन
16 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन
27 फरवरी को माघ पूर्णिमा
11 मार्च महा शिवरात्रि को पहला शाही स्नान
12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या पर दूसरा शाही स्नान
14 अप्रैल को बैसाखी पर तीसरा शाही स्नान
27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा के दिन चौथा शाही स्नान होगा.
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ज्योतिषीय भविष्यवाणियां और धार्मिक विचार मेले की तारीखें तय करने में एक भूमिका निभाते हैं। कुंभ मेला हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में हर 12 वर्षों में लगता है। यहां ये भी बता दें कि हर 6 वर्षों में अर्ध कुंभ मेला का भी आयोजन किया जाता है। इसके अलावा, प्रयागराज में संगम पर हर साल माघ मेला (जनवरी से फरवरी के मध्य से हिंदू कैलेंडर के अनुसार) में मनाया जाता है। इस माघ मेले को अर्द्ध कुंभ मेला और कुंभ मेला के रूप में भी जाना जाता है जब यह 6ठें और 12वें वर्ष में होता है।
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स्नान की मान्यता
सभी रस्मों में पवित्र स्नान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि अमावस्या के दिन पवित्र जल में डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है और मनुष्य को जन्म-पुनर्जन्म तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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