85 साल का हूं, जिंदगी जी चुका हूं.. कहकर कोरोना पीड़ित बुजुर्ग ने युवा को दे दिया अपना बेड.. पेश कर गए जिंदादिली की मिसाल | I am 85 years old, I have lived my life Saying that the corona sufferer gave the young man his bed

85 साल का हूं, जिंदगी जी चुका हूं.. कहकर कोरोना पीड़ित बुजुर्ग ने युवा को दे दिया अपना बेड.. पेश कर गए जिंदादिली की मिसाल

85 साल का हूं, जिंदगी जी चुका हूं.. कहकर कोरोना पीड़ित बुजुर्ग ने युवा को दे दिया अपना बेड.. पेश कर गए जिंदादिली की मिसाल

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:27 PM IST
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Published Date: April 28, 2021 8:40 am IST

नागपुर। कोरोना काल में जहां रोजाना हजारों लोगों की मौत हो रही है। बच्चे, यूवा और जवान इस महामारी से जूझ रहे हैं। इस दौर में भी इंसानियत जिंदा है। महाराष्ट्र के नागपुर में एक 85 साल के बुजुर्ग ने दूसरे की मदद करने के लिए अपना बेड उसे दे दिया। कोरोना महामारी से इस जंग में महाराष्ट्र के एक 85 साल के योद्धा ने एक मिसाल पेश की है। नारायण नाम के इस शख्स ने अपना बेड एक युवा को यह कहते हुए अपना बेड दे दिया कि उसे जिंदगी की ज्यादा जरूरत है।

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जानकारी के मुताबिक, नागपुर के रहने वाले नारायण भाऊराव दाभाडकर कोविड पॉजिटिव थे। काफी मश्क्कत के बाद परिवार नारायण के लिए एक अस्पताल में बेड की व्यवस्था कर पाया। कागजी कार्रवाई चल ही रही थी कि तभी एक महिला अपने पति को लेकर हॉस्पिटल पहुंची। महिला अपने पति के लिए बेड की तलाश में थी। महिला की पीड़ा देखकर नारायण ने डॉक्टर से कहा, ‘मेरी उम्र 85 साल पार हो गई है। काफी कुछ देख चुका हूं, अपना जीवन भी जी चुका हूं। बेड की आवश्यकता मुझसे अधिक इस महिला के पति को है। उस शख्स के बच्चों को अपने पिता की आवश्यकता है।’

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तीन दिन बाद हो गई मौत
नारायण ने डॉक्टर से कहा, ‘अगर उस स्त्री का पति मर गया तो बच्चे अनाथ हो जाएंगे, इसलिए मेरा कर्तव्य है कि मैं उस व्यक्ति के प्राण बचाऊं।’ इसके बाद नारायण ने अपना बेड उस महिला के पति को दे दिया। कोरोना पीड़ित नारायण की घर पर ही देखभाल की जाने लगी लेकिन तीन दिन बाद उनकी मौत हो गई। जानकारी के मुताबिक, नारायण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे।

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आरएसएस को काफी करीब से समझने वाले उत्कर्ष बाजपेई कहते हैं, ‘संघ की परंपरा ही खुद से पहले दूसरों के कल्याण की रही है। नारायण जी ने जो किया, वह एक स्वयंसेवक की प्राथमिक पहचान है।’ उन्होंने कहा कि संघ अपने स्वयंसेवकों को हमेशा यही सिखाता है कि जिसे अधिक आवश्यकता है, उसे संसाधन की उपलब्धता के लिए प्राथमिकता दी जाए, नारायण जी ने यही किया।

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बता दें दाभाडकर को कुछ दिन पहले कोरोना हुआ था। उनका ऑक्सीजन लेवल 60 तक गिर गया था। उनके दामाद और बेटी उन्हें इंदिरा गांधी शासकीय अस्पताल ले गए। वहां बड़ी मशक्कत के बाद बेड मिला। लेकिन ​​दाभाडकर अस्पताल से घर लौट आए ताकि एक युवा को बेड मिल सके।