भारत में रंगों का त्योहार होली, प्रमुख पर्वों में शामिल है। फाल्गुनी पूर्णिमा को होलिका दहन के पश्चात् चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में धूमधाम से होली का त्यौहार मनाया जाता है। फाल्गुन महीने में अपने अनुपम सौन्दर्य और बसंती पवन से लोग वैसी ही हर्षित रहते हैं ,इस ऋतुराज बसंत के मौसम में धुरेड़ी का ये पर्व है, प्रेम और स्नेह का वातावरण निर्मित करता है। हल्की गुलाबी ठंड में मदमाते टेसू, होली के रंग को कुछ और तीक्ष्ण कर देते हैं।
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हिंदु मान्यताओं में हरेक पर्व किसी-न-किसी प्राचीन घटना से जुड़ा हुआ है। होली के पीछे भी एक ऐसी ही किवदंती प्रचलित है। किसी समय हिरण्यकश्यप नाम का एक दैत्यराजा आर्यावर्त में शासन करता था। वह स्वयं को परमात्मा कहकर अपनी प्रजा से कहता था कि वह केवल उसी की पूजा करें। उसके राज्य में भगवान की उपासना करना निरुद्ध था। प्रजा को ना चाहते हुए भी दुष्ट और निर्दयी शासक के आदेश का पालन करना ही पड़ता था। उसी दैत्यराज हिरण्यकश्यप के घर विष्णु भक्त प्रह्लाद ने जन्म लिया।
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हिरण्यकश्यप जिसने अपने राज्य में ईश्वर के नाम लेने तक पर प्रतिबंध लगा रखा था, वहीं उसका ही पुत्र नारायण की भक्ति मे लीन था। पुत्र का य ह कृत्य अभिमानी हिरण्यकश्यप से सहन नहीं हुआ..अपने ही पुत्र को मरवाने के लिए दुष्ट राक्षस ने नाना प्रकार के कुचक्र रचे। किवदंतियों के मुताबिक जब भक्त प्रह्लाद किसी भी प्रकार उनके काबू में नहीं आया तो दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक दिन अपनी बहन होलिका, जो आग में जल नहीं सकती थी को प्रहलाद के साथ आत्मदाह करने का निर्देश दिया..होलका अपने भतीजे प्रह्लाद को लेकर जलती आग में कूद गई। किन्तु प्रह्लाद को अग्नि जला नहीं सकी और होलिका भयावह आग में जलकर राख हो गई। इस प्रकार होली धर्म और सत्य की रक्षा के रुप में प्रसिद्ध हुआ । भक्त प्रहलाद के जीवनरक्षा का उत्सव प्रजा ने रंगों के त्यौहार के रुप में मनाया।
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होली पूजन और हंसी खुशी के इस पर्व के पीछे व्यवहारिक तथ्य भी मिलते हैं। फाल्गुन के पश्चात् फसलें पक जाती है। ये फसल खलिहान में लाई जाती है। फसल से अन्न निकालने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है। फसलों के पकने की खुशी तो होती ही है, साथ ही इसकी आग से रक्षा के लिए अग्निदेव का आव्हान भी किया जाता है। यही वजह है कि होलिका पूजन के द्वारा किसान अग्नि में विविध पकवान, जौ की बालें, चने के पौधे डालकर अग्नि को प्रसन्न किया जाता है।
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होली सामाजिक त्यौहार है, जो आपसी गिले शिकवे मिटाने का भी एक बेहतर माध्यम है। बिना किसी पूर्वाग्रह के लोग आपस में गले मिलकर एक दूसरे को बधाई और शुभ संदेश देते हैं। पर्व केवल और केवल सकारात्मकता के प्रतीक होते हैं, हम इन त्यौहारों को आपसी मेल -मिलाप और भाईचारे के रुप में ही मनाते आए हैं। समाज के जुड़ाव को व्यक्त करने वाले ये पर्व आधुनिकता की दौड़ में शामिल हो गए हैं, लेकिन बधाई संदेशों के आदान-प्रदान से कहीं ज्यादा असर छोड़ता है व्यक्तिगत मिलन। पर्वो पर ही सही पर मिलते रहिए-प्यार बांटते रहिए।
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