भोपाल: कांग्रेस से दल बदलकर भाजपा में शामिल हुए हिमंत बिस्व सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनाया गया तो मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी आने वाले समय में बड़ी भूमिका में देखा जाने लगा है। हालांकि सिंधिया को लोकप्रिय चेहरे के तौर पर पहले से ही देखा जाता रहा है। कांग्रेस में वो मुख्यमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे। बीजेपी में उन्हें मात्र इस कारण मुख्यमंत्री पद के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था, क्योंकि वो मूल रूप से पार्टी के कार्यकर्ता नहीं है। दलबदल कर आए हैं, लेकिन असम में जैसे हिमंत को सीएम की कुर्सी मिली। उससे उन नेताओं के लिए मुख्यमंत्री पद का रास्ता खोला है जो दलबदल कर पार्टी में आए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है जैसे असम में हिमंत बिस्व को बीजेपी ने रिवॉर्ड दिया? क्या एमपी में भी सिंधिया सर्वस्वीकार्य चेहरा बन सकेंगे ?
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असम में बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद सीएम पद पर हिमंत विस्व सरमा की ताजपोशी हो गई। सर्वानंद सोनोवाल की जगह हिमंत बिस्वा सरमा को सीएम की कुर्सी देकर बीजेपी ने न केवल उनकी पुरानी इच्छा पूरी की, बल्कि ऐसे नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी हवा दे दी है, जो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए हैं या ऐसी इच्छा रखते हैं। लेकिन कैडर आधारित पार्टी में अपने भविष्य को लेकर सशंकित हैं। इस सूची में मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं, जो मार्च, 2020 में बीजेपी में आने के बाद से पार्टी की ओर से कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने की प्रतीक्षा में हैं। हालांकि पार्टी की प्रदेश इकाई असम और मध्यप्रदेश की परिस्थितियों को बिल्कुल अलग मानती है।
करीब सवा साल पहले जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा था। सिंधिया अपने साथ करीब 25 विधायकों को लेकर आए थे, जिसके चलते मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई और बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिल गया। शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने तो सिंधिया समर्थकों को मंत्री पद मिला, लेकिन खुद महाराज अब भी प्रतीक्षा में हैं। बीजेपी के बारे में ये आम धारणा है कि पार्टी में नए आए लोगों को संदेह की नजरों से देखा जाता है। बीजेपी की रीति-नीति में रचे-बसे लोगों को ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जाती हैं। सुब्रमण्यम स्वामी से लेकर सतपाल महाराज तक इसके कई उदाहरण भी हैं। यही वजह है की सिंधिया को लेकर कांग्रेस ने हमेशा से बीजेपी में उनकी उपेक्षा को बड़ा मुद्दा बनाया है।
असम में हिमंत विस्व सरमा को मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर बीजेपी ने ये संदेश दे दिया है कि अपनी उपयोगिता साबित करने वाले लोगों को महत्वपूर्ण पद देने से उसे गुरेज नहीं है, इस फैसले में सिंधिया के लिए स्पष्ट संदेश है कि बीजेपी में बड़ी जिम्मेदारी के लिए उन्हें धैर्य रखने के साथ अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी, जैसा कि असम में सरमा पार्टी की उम्मीदों पर हर बार खरे उतरे। जाहिर है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि सिंधिया मध्यप्रदेश की राजनीति में सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं, उनके समर्थक गाहे-बगाहे उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग करते रहे हैं। संघ में सिंधिया की स्वीकारता भी भविष्य में उनके बढ़ते कद की और इशारा कर रही है। लेकिन क्या मध्यप्रदेश की राजनीति में हिमंत बिस्व सरमा साबित होंगे ज्योतिरादित्य सिंधिया? ये बड़ा सवाल है?