आज का दिन कई मायनों में खास है। इस दिन को ऐसे भी समझा जा सकता है कि जिस घर में हमने जनम नहीं लिया, जिसको बचपन से जाना पहचाना नहीं, जो अब से पहले तक कोई रिश्ता नाता नहीं था। लेकिन वो अब जान से ज्यादा प्यारा है। इतना कि उसके लिए पूरे दिन एक बूंद पानी के पिए बिना पूरे जतन से शक्ति की भक्ति में लीन हो जाना यदि ऐसा कहीं तो होता तो बस इस देश में ही होता है। और इस आगाध और अनंत प्रेम की वजह भी परम शक्ति की प्रेरणा है।
हमारी मान्यताएं इतनी वैज्ञानिक है कि इस दौर में भी लोग उन्हें ना केवल लेकर चल रहे हैं बल्कि उसकी तथ्य और आत्मा को भी समझते हैं। हरितालिका तीज का ये दिन उस रिश्ते की गहराई को समझाने का प्रय़ास करता है जहां एक पत्नी एक अपने सुहाग की सलामती के लिए कठोर तप और जप करती है। ये दिन पतियों के लिए उतना ही महत्व रखता है जितना उनकी अर्घांगिनी के लिए, कुछ पुरुष अपनी पत्नियों के लिए भी व्रत रखते हैं,जो किसी मजबूरी या आदत ना हो पाने के चलते ऐसा कठिन व्रत नहीं रख पाते वो भी हर पल अपनी घरवाली की चिंता में मग्न रहते हैं।
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जैसा कि हम सभी जानते हैं हिंदु धर्म में महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए साल में कई व्रत रखती हैं। इन्हीं में से एक है हरतालिका तीज व्रत। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती जी की पूजा में लीन रहती हैं। एक दिन पूर्व मध्य रात्रि से ही ये व्रत शुरु हो जाता है। दिन का पूरा समय संध्या की पूजा की तैयारियों में बीतता है, और फिर जब शाम ढ़लती है तो ईश्वर की आराधना के स्वर हर तरफ से गुंजायमान हो जाते हैं। ये सब कुछ इतना प्रेम भाव से होता है कि पति-पत्नी के रिश्ते में ऐसी मिठास घोलती है, जो जीवन के अंतिम छोर तक स्पंदित होती रहती है।
हरतालिका तीज का ये व्रत शादीशुदा महिलाएं ही नहीं बल्कि कुंवारी कन्या भी सुयोग्य वर की कामना हेतु यह व्रत करती हैं। ऐसी मान्यता है कि शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने विवाह से पहले यह व्रत रखा था। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार, हरतालिका तीज का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने रखा था। इसके फलस्वरूप भगवान शंकर पति के रूप में उन्हें मिले। यही कारण है कि व्रत में पूजा करने के लिए बाजार में शिव- पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और नंदी की मिट्टी की मूर्तियां खूब मिलती हैं।
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हरतालिका व्रत को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी सुनने को मिलती है। कथा के अनुसार माता सती जो भगवान शिव का वरण करना चाहती थी उनके पिता प्रजापति भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते ते। प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें अपने पिता द्वारा अपने पति शिव का अपमान देवी सती सह न सकीं। उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्म् कर दिया। अगले जन्म में उन्होंने राजा हिमाचल के यहां जन्म् लिया और पूर्व जन्मञ की स्मृति शेष रहने के कारण इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। देवी पार्वती ने तो मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्या् में लीन रहतीं। पुत्री की यह हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी।
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इस संबंध में उन्होंने नारदजी से चर्चा की तो उनके कहने पर उन्होंने अपनी पुत्री उमा का विवाह भगवान विष्णु से कराने का निश्चेय किया। पार्वतीजी को जब यह पता लगा कि उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से उनका विवाह कराना चाहते हैं तो उन्होंने अपनी सखियों की सहायता से शिवजी का वरण किया । किसी और से कतई विवाह नहीं करेंगी। पार्वतीजी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं। इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा। पार्वती जी तब तक शिवजी की तपस्या करती रहीं जब तक उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त नहीं हुए।
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इस व्रत को रखने के लिए सारा दिन निर्जला रहने के साथ कुछ विशेष नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है।
हरतालिका व्रत की पूजा का विधि विधान
* नियम और व्रत कथा हरतालिका तीज का व्रत निर्जला किया जाता है। यानी पूरा दिन, पूरी रात और अगले दिन सूर्योदय के पश्चाकत अन्न और जल ग्रहण किया जाता है।
*यह व्रत कुंवारी कन्यााएं और सुहागिन महिलाएं रखती हैं।
*इस व्रत को एक बार प्रारंभ करने के पश्चाात छोड़ा नहीं जाता।
*हरतालिका व्रत में रात में सोया नहीं जाता है बल्कि पूरी रात प्रभु का भजन कीर्तन करना शुभ माना जाता है।
नेता गुंडे बनते हैं या गुंडे नेता
4 weeks ago