गुरु पूर्णिमा : ज्ञान के अथाह सागर में गुरु ही पतवार है, मझधार से जो निकालो वही खेवनहार है | Guru Purnima: The glory of the Guru is immortal

गुरु पूर्णिमा : ज्ञान के अथाह सागर में गुरु ही पतवार है, मझधार से जो निकालो वही खेवनहार है

गुरु पूर्णिमा : ज्ञान के अथाह सागर में गुरु ही पतवार है, मझधार से जो निकालो वही खेवनहार है

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Modified Date: November 29, 2022 / 07:56 PM IST
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Published Date: July 15, 2019 3:58 pm IST

किसी भी व्यक्ति की सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ उसके गुरु का होता है। जीवन में किसी भी कार्य को करने से पहले उसे सीखना और समझना पड़ता है और सिखाने वाला, समझाने वाला व्यक्ति ही गुरु होता है। गुरु किसी भी रूप में आपको मिल सकता है। वह आपके माता-पिता या कोई संबंधी भी हो सकते हैं। हिन्दू धर्म में गुरु को सर्वोच्च  है।

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संत कबीर ने गुरु की महिमा कुछ इस तरह बयां की है।

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

अर्थ: गुरू और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोविन्द को, ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है, जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

गुरु पूर्णिमा के दिन को गुरुओं को समर्पित किया गया है। इस बार गुरु पूर्णिमा 16 जुलाई को है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।

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इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म भी हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है, अतः इस दिन वायु के प्रवाह का  आंकलन करके आने वाली फसलों का अनुमान भी किया जाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करता है और उसे यथाशक्ति दक्षिणा,पुष्प,वस्त्र भेंट करता है। शिष्य इस दिन अपनी सारे अवगुणों को गुरु को अर्पित कर देता है, औरअपना सारा भार गुरु को दे देता है।
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हम लोग शिक्षा प्रदान करने वाले को ही गुरु समझते हैं परन्तु वास्तव में ज्ञान देने वाला शिक्षक बहुत आंशिक अर्थों में गुरु होता है। जन्म जन्मान्तर के संस्कारों से मुक्त कराके जो व्यक्ति या सत्ता ईश्वर तक पहुंचा सकती हो,ऐसी सत्ता ही गुरु हो सकती है।

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ऐसे करें पूजा-अर्चना –

सर्वप्रथम एक साफ स्थान पर श्वेत वस्त्र को बिछाकर उस चावल रखें। चावल के ऊपर कलश और उसके ऊपर नारियल रखें।
इसके पश्चात उत्तराभिमुख होकर अपने सामने गुरु का या भगवना शिव की तस्वीर रखें। भोलेनाथ को भी गुरु मान सकते हैं।
महादेव को गुरु मानकर मंत्र पढ़ते हुए श्रीगुरुदेव का आवाहन करें।