नई दिल्ली । पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने चीन से सीमा विवाद पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरा है। मनमोहन सिंह ने तंज कसते हुए कहा कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति और मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता है। डॉ. मनमोहन सिंह का यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार गलवान सीमा विवाद पर सीधे पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला बोल रहे हैं। राहुल गांधी ने तो बेहद विवादित टिप्पणी करते हुए पीएम मोदी को चीन के साथ भारतीय जमीनको सरेंडर करने वाला तक बता दिया है। अब राहुल के साथ मनमोहन सिंह भी आ गए हैं।
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15 जून को लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ झड़प में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हुए पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने सीधे तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी को घेरा है। मनमोहन सिंह ने कहा, ‘आज हम इतिहास के एक नाजुक मोड़ पर खड़े हैं। हमारी सरकार के निर्णय व सरकार द्वारा उठाए गए कदम तय करेंगे कि भविष्य की पीढ़ियां हमारा आकलन कैसे करें। जो देश का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके कंधों पर कर्तव्य का गहन दायित्व है. हमारे प्रजातंत्र में यह दायित्व देश के प्रधानमंत्री का है.’।
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पीएम मोदी को कर्तव्य का स्मरण कराते हुए मनमोहन सिंह ने उन्हें अपने बयानों को लेकर भी नसीहत दी है। मनमोहन सिंह ने कहा है कि प्रधानमंत्री को अपने शब्दों व ऐलानों द्वारा देश की सुरक्षा एवं सामरिक व भूभागीय हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सदैव बेहद सावधान होना चाहिए।
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पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने ये भी कहा कि हम सरकार को आगाह करेंगे कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति तथा मजबूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता है। साथ ही पिछलग्गू सहयोगियों द्वारा प्रचारित झूठ के आडंबर से सच्चाई को नहीं दबाया जा सकता है।
बता दें कि चीन के मसले पर सर्वदलीय बैठक के बाद पीएम मोदी ने स्पष्ट कहा था कि हमारी सीमा में न तो कोई घुसा है और न ही किसी ने हमारी किसी पोस्ट पर कब्जा किया है। पीएम मोदी के इस बयान पर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए तो पीएमओ को सफाई जारी करनी पड़ी। पीएमओ की तरफ से बताया गया कि LAC पर चीनी सेना की हरकतों की वजह से विवाद हुआ है। ये विवाद अब भी जारी है। सीमा पर तनाव है। हालांकि, सरकार ने अब कई सख्त फैसले लिए हैं और सेना से कहा है कि अगर बात जान पर आती है तो किसी करार की फिक्र न करें और अपना बचाव करें। मनमोहन सिंह ने भी सरकार से मांग की है कि प्रधानमंत्री वक्त की चुनौतियों का सामना करें और सैनिकों की कुर्बानी की कसौटी पर खरा उतरें, इससे कुछ भी कम जनादेश से ऐतिहासिक विश्वासघात होगा।