दतिया: जिले के झिर का बाग निवासी रज्जू कुशवाहा पिता हरू कुशवाहा वर्षो से परम्परागत खेती के रूप में गेंहूं, चना एवं अन्य फसलें ले रहे थे। उनसे अधिक आय नहीं हो पाती थी। रज्जू के परिवार ने निर्णय लिया कि परम्परागत फसलों के साथ-साथ समय की मांग के अनुरूप क्यों न फूलों एवं फलों की खेती करें इसके लिए परिवार के लोग फूलों की खेती करने लगे इससे रज्जू के परिवार में खुशहाली आने लगी।
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रज्जू कुशवाहा के परिवार की आज स्थिति यह है कि प्रतिदिन ग्लायडिया, गुलाब एवं गेंदे के फूलों की खेती से अच्छी आय ले रहे है। रज्जू कुशवाहा ने बताया कि फूलों की खेती करने पैसों की चिन्ता नहीं करनी पड़ती है। जबकि परम्परागत फसलें एक निश्चित समय पर बेचने पर ही दाम मिलते थे। उन्होंने बताया कि कोरोना लॉक डाऊन के दौरान धार्मिक स्थल बंद होने के कारण फूलों की खपत नहीं होने के कारण उनको नुकसान भी हुआ। लेकिन अब फूलों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। जिससे फूलों के बेचने अच्छी आय प्राप्त हो रही है और परिवार में खुशहाली आई है।
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उन्होंने बताया कि दतिया में मॉ पीतम्बरा पीठ मंदिर पर दर्शनार्थियों द्वारा पूजा अर्चना में उपयोग होने वाली माला हेतु फूलों की मांग भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। लेकिन शनिवार को श्रृद्धांलुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए फूलों की मांग और अधिक बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि पांच बीघा जमीन में से दो बीघा जमीन में फूलों की खेती कर रहे है जबकि तीन बीघा जमीन में परम्परागत फसले ले रहे है। फूलों की खेती के साथ पपीता, अमरूद, बेर, जामुन, आम और आंवले की खेती कर उन्हें अतिरिक्त आय भी हो रही है। उन्होंने बताया कि समय-समय पर कृषि विज्ञान केन्द्र दतिया के वैज्ञानिकों का भी मार्गदर्शन एवं सहयोग मिल रहा है।
रज्जू कुशवाहा ने बताया कि फलों की खेती के साथ-साथ वह साग सब्जी की खेती भी ले रही है। साग-साब्जी की खेती में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग न कर उनके पास उपलब्ध चार भैस, तीन गाय और दो बैलों से मिलने वाले गोबर खाद का उपयोग कर रहे है। जिससे साग, सब्जियां एवं फलों के इन्हें अच्छे दाम भी बेहतर मिल रहे हैं।
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