छत्तीसगढ़ में गज'राज' ! हाथियों के आने से क्या बदला ? देखें ये रिपोर्ट | Elephant attack in gariaband district, special report of IBC24

छत्तीसगढ़ में गज’राज’ ! हाथियों के आने से क्या बदला ? देखें ये रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ में गज'राज' ! हाथियों के आने से क्या बदला ? देखें ये रिपोर्ट

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:50 PM IST
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Published Date: January 18, 2021 8:01 am IST

रायपुर। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में हाथियों के दल ने जो तबाही मचाई, उसने वन विभाग के अधिकारियों को भी हैरान कर दिया है। दरअसल, हाथियों का यह दल बिल्कुल नया है। अब तक इस हाथी दल की मौजूदगी गरियाबंद बॉर्डर के पास ओडिशा के इलाकों में ही देखी जाती थी। लेकिन पहली बार इस दल ने छत्तीसगढ़ का रूख किया। जमीनी पड़ताल में आपको नए गजराज दल की कहानी बताते हैं कि कैसे इस दल के दो सदस्य तीन चार साल पहले छत्तीसगढ़ में आकर रूट की रेकी की और फिर दल बल के साथ इस साल इलाके का रूख किया है।

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इस हाथी दल ने गरियाबंद जिल में जमकर तबाही मचाई। लेकिन इस दल को लेकर वन विभाग के अधिकारी भी हैरान हैं, क्योंकि ये दल छत्तीसगढ़ में पहली बार आया है। लिहाजा, ये किस रूट पर आगे बढ़ेगा और कहां तक जाएगा, इसकी पुख्ता जानकारी फिलहाल वन विभाग के पास नहीं है। सिवाय इसके कि इन पर लगातार नजर रखें और फिर इसके आने और जाने का रूट चिन्हित कर सकें। 28 हाथियों के इस दल में तीन शावक हाथी हैं। लिहाजा, हाथी दल ज्यादा आक्रामक तो नहीं है, लेकिन दल बड़ा होने के चलते फसल और घरों के नुकसान होने की आशंका ज्यादा बढ़ गई है।

बताया जा रहा है कि इस हाथी दल के दो सदस्य तीन-चार साल पहले रेकी करने छत्तीसगढ़ आए थे। रूट की रेकी करने के बाद ये वापस लौट गए थे। गरियाबंद डीएफओ मयंक अग्रवाल बताते हैं कि इस हाथी दल की मौजूदगी एक दो साल पहले गरियाबंद से सटे इलाके में देखी गई थी। लेकिन तब ये पहाड़ी के नीचे ही सिमट कर रहा करता था।

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जिन-जिन इलाकों से तबाही मचाता ये दल आगे बढ़ा है, उस गांव के लोग भी बताते हैं कि पहली बार है जब हाथियों का कोई दल उनके गांव आया है। हाथी का दल गरियाबंद होते हुए धमतरी जिले में प्रवेश कर चुका है। माना जा रहा है कि धमतरी में आने के बाद ये दल या तो गंगरेल इलाके में लंबे समय तक रूक सकता है या फिर दक्षिण में कांकेर, केशकाल होते हुए वापस आ सकते हैं। इस हाथी दल का रूट चिन्हित होने के बाद दल का नामकरण किया जाएगा।

बहरहाल हाथियों के दल पर सतत निगरानी के लिए वन विभाग के पास एक विकल्प कॉलर रेडियो लगाने का हैं, हालांकि केंद्र सरकार से इसकी अनुमति मिलने से लेकर इसे अंजाम देने तक की प्रक्रिया काफी पेचीदगी भरा है, लिहाज अभी फोकस ट्रेडिशनल तरीकों पर ही है। अगर केंद्र सरकार से रेडियों कालर की अनुमति नहीं है तो सवाल है कि आखिर इसके बाद राज्य सरकार के पास क्या विकल्प है?

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सांसत में जान, रतजगा और भय में गुजरती है रात

हाथियों का दल जिन इलाकों से गुजरता है, अपने पीछे बर्बादी और डर का निशान छोड़ जाता है, लेकिन डर उन इलाकों के मन में भी कम नहीं होता, जो हाथी मूवमेंट रूट पर पड़ते हैं।। वन विभाग पहले से ही उन इलाकों में सतर्क रहने की मुनादी करा देता है, जहां हाथी दल के पहुंचने की आशंका होती है। कैसी होती है वन विभाग की तैयारी और कैसे डर के साए में कटती है ग्रामीणों की रात, जिसके आस पास हाथियों का दल होता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है।

ये मुनादी वन विभाग की टीम की ओर से की जा रही है। हाथियों का दल गरियाबंद जिले के इसी खरता गांव के पास मौजूद जंगल में डेरा डाले हुए हैं। लिहाजा वन विभाग गांव के लोगों को सतर्क कर रहा है। सोंढूर नदी के किनारे बसे इस गांव के दूसरी तरफ धमतरी जिला शुरू हो जाता है जहां हाथियों का दल नदी पार कर जंगल में डेरा डाले हुए हैं। एक दिन पहले ही हाथियों का दल इस गांव से होते हुए पार हुआ था। लिहाजा ग्रामीणों की रात डर के साये में कट जाती है।

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हाथी के मूवमेंट पर रखी जाती है नजर

वन विभाग की ट्रैकर टीम लगातार हाथी के मूवमेंट पर नजर रखी हुई है। गरियाबंद जिले में दो ट्रैकर टीम काम करती है। हाथी के पदचिन्हों को तलाश करती टीम उसके मूवमेंट का पता करती है और फिर अधिकारियों को खबर दी जाती है कि हाथी किस दिशा की ओर से बढ़ रहा है। इसी जानकारी के आधार पर वनविभाग हाथी रूट में आने वाले गांवों में मुनादी कराता है। हमारी टीम की मुलाकात भी ऐसे ही ट्रैकर टीम से हुई, जो सभी साजो समान से लैस हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार नजर आई।

दिन ढल चुका था। शाम घिर आई थी। खबर मिली कि हाथी दल नदी के उस पार धमतरी जिले के गांव में देखा गया है। हमारी टीम जंगल के बीच कच्ची रास्तों से होते हुए जब धमतरी जिले के खुदुरपानी गांव तक पहुंची तो पूरी तरह से अंधेरा छा चुका था। गांव में एक जगह लोगों की भीड़ खड़ी थी। उतरकर जब उनसे पूछताछ की तो पता चला गांव के लोगों ने एक डेढ़ किलोमीटर दूर ही हाथी के चिंघारने की आवाज सुनी है। सब डरे हैं और मशाल, आग जलाने की तैयारी की जा रही है ताकि रात में हाथी दल इस गांव की तरफ ना आ जाए।

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एक ग्रामीण के साथ हम जंगल की तरफ आगे बढ़े। रात का अंधेरा पूरी तरह से गहरा चुका था। आगे रास्ता नहीं होने के कारण हमे अपनी गाड़ी वहीं छोड़नी पड़ी और ग्रामीण के साथ उनकी बाइक पर सवार होकर आगे बढ़े।रात पूरी तरह गहराने लगी थी। गजराज दलों के विचरण का समय हो चुका था। ग्रामीण भी खतरा को भांपते हुए अपनी बस्ती में लौट आए थे। जंगल से गुजराने वाला रास्ता सुनसान हो चुका था। इंसान और हाथी के बीच संघर्ष की कहानी में वक्त सामंजस्य दिखाने का आ चुका था। हाथी को खाना चाहिए और आगे बढ़ने का रास्ता। दूसरी ओर इंसान को बस अपनी जिंदगी और वन विभाग का अमला, इन दोनों के संघर्ष के बीच तालमेल बिठाने की खातिर सुदूर जंगल में हाथी दल की सतत निगरानी में जुटा है।

मुआवजा और वन विभाग की तैयारी

इंसान और हाथियों के बीच जारी संघर्ष में अब तक सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई हैं। वहीं, सैकड़ों हाथियों को भी मौत के मुंह में समाना पड़ा। ये संघर्ष अब भी जारी है, लेकिन हकीकत यही है कि हम इंसानों को हाथी के साथ सामंजस्य बिठा कर ही जीना होगा। इसी कोशिश में वन विभाग भी जुटा है।

जंगल कभी हाथियों का ही घर हुआ करता था। इंसानों की आबादी बढ़ी और उनका दखल जंगलों में ज्यादा बढ़ गया और यही दखल इंसान-हाथियों के संघर्ष के रूप में सामने आ रहा है, लेकिन हकीकत यही है कि हम इंसानों को हाथियों के साथ सामंजस्य बिठाकर ही जिंदगी जीना है वन विभाग भी इसी कोशिश में जुटा है। हाथियों के विचरण क्षेत्र का सक्रिय केंद्र होने के बावजूद गरियाबंद में इंसानी जान जाने की घटना कम हुई है। साथ ही हाथियों से हुए नुकसान की जल्द भरपाई और असेसमेंट के चलते लोगों का आक्रोश भी हाथियों के लिए ज्यादा नहीं दिखता। इसके लिए गरियाबंद डीएफओ की कोशिश काबिले तारीफ है।

 

तैयार किया गया है ऐप

दरअसल, वन विभाग का अमला दो फ्रंट पर लगातार काम कर रहा है। पहला फ्रंट हाथियों के आने पर बचाव का है। राज्य के वन विभाग की ओर से सजग नाम से एक ऐप तैयार किया गया है। इसमें हाथी विचरण रूट पर आने वाले गांवों में अलार्म सिस्टम लगाया गया है। यदि हाथी गांव की तरफ बढ़ रहा हो तो अधिकारी जिला मुख्यालयों से ही ऐप के माध्यम से गांवों में अलर्ट सायरन बजा देते हैं।

एकदम करीब होने पर रेड अलार्म बजाया जाता है। वैसे ही, ट्रैकिंग टीम के माध्यम से हाथी मूवमेंट पर नजर रख कर आस पास के 5 किलोमीटर के दायरे में अलर्ट किया जाता है। हाथी मित्र दल का गठन भी इसी मकसद से किया गया है। वन विभाग हर गांव से चार से पांच लोगों को हाथी मित्र दल में शामिल कर उसे हाथी से बचाव की ट्रेनिंग देते हैं। साथ ही मशाल बना कर आपातकाल के इस्तेमाल के बारे में बताया जाता है। तकनीक का इस्तेमाल भी अलर्ट के लिए किया जाता है।

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हाथी आने पर लोग जान बचाने पर देते हैं जोर

एक सबसे बड़ी पहल मुआवजा को लेकर भी है। हाथी आने पर लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके चलते लोग हाथी को अपना दुश्मन ना मान लें, इसके लिए उसे बाजार मूल्य पर मुआवजा दिया जाता है। फसल, अनाज, घर, और जान का नुकसान होने पर प्रर्याप्त मुआवजा दिया जाता है। यही वजह है कि लोग भी हाथी के आने पर सिर्फ अपनी जान बचाने पर जोर देते हैं। फसल या अनाज खाने पर हाथी को भगाते नहीं है, क्योंकि उन्हें उसकी कीमत मिल जाती है।

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गरियाबंद डीएफओ की तरफ से ही पिछले एक साल में फसल मुआवजे के तौर पर लोगों को 10 लाख रुपये से ज्यादा दिया गया है। मकान क्षतिग्रस्त होने पर 6.25 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया है। घटना के तत्काल बाद मुआवजा और मदद की पहल के चलते भी लोगों को भरोसा वन विभाग पर बढ़ा है, और इसी का नतीजा है कि गरियाबंद जिले मे हाथी और इंसानों की संघर्ष की कोई बड़ी घटना नहीं हुई है। जैसा कि देश और प्रदेश के कई दूसरे हिस्सों से अक्सर सुनने को मिल जाती है।

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