डिंडौरी। जिले के किसलपुरी गांव का एक अनोखा प्राचीन मंदिर…जिसे यहां के लोग देवी मंदिर के नाम से जानते हैं । लोग बरसों से इस धाम में पूजा-अर्चना करते रहे हैं । इस दर से कोई भी निराश नहीं लौटता…देवी सबकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं…स्थानीय लोगों का दावा है कि उन्होंने देवी के कई चमत्कार देखे हैं…वरदानी है इस मंदिर की चौखट…यहां माथा टेकने मात्र से दूर हो जाते हैं सारे दुख-दर्द…
देवी करुणामयी है…उनका स्वरूप कल्याणकारी है…वो भक्तों पर कृपा बरसाती हैं…तभी तो यहां मुरादों का मेला लगता है। इस दर पर श्रद्धालु पूरी श्रद्धा के साथ पहुंचते हैं। यहां कदम रखते ही शुरू होता है आराधनाओं का दौर….देवी के जयकारे से हर पल मंदिर का वातावरण गुंजायमान रहता है । मंदिर में लगी घंटियां कभी खामोश नहीं रहती है…हर वक्त यहां आस्था की स्वरलहरियां गूंजती हैं।
ये भी पढ़ें- अनलॉक के पहले ही दिन दर्ज हुआ इस मंदिर के पुजारी के खिलाफ मामला, जा…
लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है…ग्रामीण इस मंदिर के इतिहास के बारे में ज्यादा नहीं जानते…लेकिन इसे वो चमत्कारी धाम के रूप में ज़रूर देखते हैं । ये मंदिर प्राचीन होने के साथ ही काफी सिद्ध भी है….यही वजह है कि इस दरबार में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
यहां कीमती अवशेषों के अलावा सात देवियों की प्रतिमा और भगवान विष्णु की प्रतिमा भी है, जो फिलहाल मंडला संग्रहालय में सुरक्षित रख दी गई है । लेकिन उन प्रतिमाओं के अलावा भी यहां बहुत कुछ ऐसा है, जिन्हें संरक्षण की ज़रूरत है। इतिहासकार यहां के भग्न मंदिर को कलचुरीकालीन मानते हैं । मंदिर और प्रतिमाओं के निर्माण की शैली कलचुरीकालीन है । केवल यहीं ही नहीं बल्कि इस पूरे इलाके में यानी अमरकंटक से डिंडौरी तक कलचुरी काल में बने मंदिर दिखते हैं। किसलपुरी में मिली इन पुरातन निशानियां एक बड़े दायरे में फैली हुई हैं। इससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां का निर्माण क्षेत्र काफी विस्तृत रहा होगा । मंदिर के अलावा भी कुछ और महत्वपूर्ण निर्माणों की संभावना से भी इतिहासकार इंकार नहीं करते हैं।
ये भी पढ़ें-वर्षा आते ही जुड़ने लगते हैं सावन-भादों के स्तंभ, लक्ष्मीनारायण- भग…
किसलपुरी के मंदिर के बारे में शोध से ये संभावना भी सामने आई है कि ये मंदिर पाषाण युग का भी हो सकता है। भग्न मंदिर के चबूतरा देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो कितना विशाल और कितना कलात्मक रहा होगा ।
किसलपुरी का ये मंदिर सदियों का इतिहास समेटे खड़ा है। यहां पर मिलने वाली प्रतिमाएं इस मंदिर की भव्यता के प्रमाण हैं । लेकिन कठोर मौसम ने इसकी चमक फीकी कर दी है। ऐसे में उपेक्षा का दंश झेल रहे इस मंदिर को संरक्षण की ज़रूरत है । समय रहते यदि इस मंदिर पर ध्यान दिया गया तो कई दुर्लभ प्रतिमाओं को नष्ट होने से तो बचाया जा सकेगा ही ..इसके साथ ही आस्था के इस धाम को पर्यटन के केंद्र के तौर पर भी स्थापित किया जा सकता है।
ये भी पढ़ें- ब्रम्हा की तपोभूमि है नर्मदा नदी पर स्थित बरमान घाट, कण-कण में व्या…
किसलपुरी के इस मंदिर की महिमा गाते ग्रामीण नहीं थकते…बताया जाता है कि यहां एक नाग और नागिन का जोड़ा भी है…जो हर नागपंचमी के दिन दिखाई पड़ता है और वो हमेशा भग्न मंदिर के चारों ओर घूमते रहता है। मंदिर तो प्राचीन है ही…इसके रखवाले भी खास हैं। मंदिर की हिफाजत कोई और नहीं बल्कि नाग-नागिन करते हैं…ये अकसर यहां दिखाई देते हैं और फिर गायब हो जाते हैं…ये नाग-नागिन कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहां घूमने वाले नाग-नागिन की उम्र इतनी अधिक हो गई है कि उनके शरीर पर बाल भी आ गए हैं। नागदेवता की मौजूदगी के चलते ये जगह और भी ज्यादा चमत्कारी लगती है। यही वजह है कि आसपास के ग्रामीण रोज़ाना यहां आकर माथा टेकना नहीं भूलते । यहां एक विशाल तालाब भी हैं….जिसका रहस्य आज तक लोग जान नहीं पाए हैं । इस तालाब की जब-जब खुदाई होती है…तब-तब यहां प्राचीन मूर्तियां निकलती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि तालाब में कई प्राचीन मूर्तियां आज भी दबी हुई हैं । तालाब के किनारे भी अकसर प्राचीन प्रतिमाएं मिलती रहती हैं ।
जितना प्राचीन ये भग्न मंदिर है, उतनी ही गहरी यहां के लोगों की आस्था है। स्थानीय लोग इस मढ़िया को चमत्कारी मानते हैं। । ग्रामीण यहां हमेशा देवी की भक्ति में लीन रहते हैं और देवी को प्रसन्न करने के लिए समय-समय पर उत्सवों का आयोजन भी करते हैं ।