देवउठनी एकादशी आज, जानिए संपूर्ण पूजन विधि, मुहूर्त और महत्व | Devauthani Ekadashi today, know the complete worship method, Muhurta and importance

देवउठनी एकादशी आज, जानिए संपूर्ण पूजन विधि, मुहूर्त और महत्व

देवउठनी एकादशी आज, जानिए संपूर्ण पूजन विधि, मुहूर्त और महत्व

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:31 PM IST
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Published Date: November 8, 2019 2:53 am IST

रायपुर। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को प्रबोधनी या देवउठनी, तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में मनाई जाती है।
माना जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को शयन से जगते हैं। अतः इन चार माह में कोई भी मांगलिक कार्य संपन्न नहीं किए जाते। विष्णुजी के जागरण के उपरांत कार्तिक मास की एकादशी को प्रबोधनी या देवत्थान एकादशी के तौर पर मनाया जाता है। इसमें दीपदान, पूजन तथा ब्राम्हणभोज कराकर दान से धन-धान्य, स्वास्थ्य में लाभ होता है।

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तुलसी विवाह

कार्तिक मास में पूरे माह दीपदान तथा पूजन करने वाले वैद्यजन एकादशी को तुलसी और शालिग्राम का विवाह रचाते हैं। समस्त विधि विधान से विवाह संपन्न करने पर परिवार में मांगलिक कर्म के योग बनते हैं ऐसी मान्यता है।

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भीष्म पंचक
कहा जाता है कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ किंतु भीष्म पितामह शरशया पर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तब श्री कृष्ण पाच पांडवों को लेकर मिलने गए। उपयुक्त समय जानकर युधिष्ठिर ने पितामह से प्रार्थना की आप राज्य संबंधी उपदेश कहें, तब भीष्म ने पांच दिनों तक राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश किया। जिसे सुनने से संतुष्ट श्री कृष्ण ने पितामह से वादा किया अब के बाद जो भी इन पांच दिनों तक उॅ नमो वासुदेवाय के मंत्र का जाप कर पांच दिनों तक व्रत का पालन करते हुए उपदेश ग्रहण करेगा तथा अंतिम दिन में तिल जौ से हवन कर संकल्प का पारण करेगा, उसे सभी सुख तथा मोक्ष की प्राप्ति होगी, जो कि भीष्म पंचक के नाम से जाना जायेगा। तब से इस विधान को नियम से करने वालों को जीवन के कष्ट समाप्त होकर सुख की प्राप्ति होती है।

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क्या है मान्यता

तुलसी का भगवान विष्णु के साथ विवाह करके लग्न की शुरुआत होती है। आचार्य प्रियेन्दु प्रियदर्शी के अनुसार वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु काले पड़ गए थे। उन्हें शालिग्राम के रूप में तुलसी चरणों में रखा जाएगा।

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें जागने का आवाहन कर व्रत करने का संकल्प लें। शाम के समय घर के मंदिर को साफ करके वहां चूना और गेरू की रंगोली बनाएं। साथ ही घी के 11 दीपक देवताओं के निमित्त जलाएं। गन्ने का मंडप बनाकर, बीच में चौक बनाया जाता है। चौक के बीच में विष्णु भगवान की मूर्ति रखें। चौक के पास ही भगवान के चरण चिन्ह बनाएं जिसे ढक दें। भगवान हरि को गन्ना, सिंघाड़ा, लड्डू, पतासे, मूली आदि ऋतुफल अर्पित करें। एक घी का दीपक जलाएं जो रात भर जलता रहे। साथ ही 11 दीपक देवताओं के निमित्त जलाएं। व्रत रखने वाले व्रत कथा सुनें। भगवान की विधि विधान पूजा करने के बाद से ही सभी मांगलिक कार्य शुरू किये जा सकते हैं।

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इस दिन मंत्रोच्चारण, स्त्रोत पाठ, शंख घंटा ध्वनि एवं भजन-कीर्तन द्वारा देवों को जगाने का विधान है। भगवान को जगाने के लिए इन मंत्रों का जप करें। उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥ उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥ शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव। मंत्र ज्ञात नहीं होने पर या शुद्ध उच्चारण नहीं होने पर ‘उठो देवा,बैठो देवा’ कहकर श्री नारायण को उठा सकते हैं।

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देव उठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त (Dev Uthani Ekadashi Muhurat) : एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 07, 2019 को 09:55 ए एम बजे एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 08, 2019 को 12:24 पी एम बजे 9 नवम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 06:39 ए एम से 08:50 ए एम पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 02:39 पी एम

 
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