नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने अपने एक लेख में लिखा है कि (‘सुप्रीम कोर्ट को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार है’)। पूर्व न्यायाधीश ने यह लेख कैलाश जीनगर (असिस्टेंट प्रोफेसर ऑफ लॉ, कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय) के लेख के जवाब में लिखा है।
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जानिए काटजू ने अपनी लेख में क्या लिखा है
भारतीय संविधान में कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत जाति आधारित आरक्षण अनिवार्य है। अनुच्छेद 15 (4), 16 (4), और 16 (4A) में केवल यह कहा गया है कि पिछड़े वर्गों के लिए प्रशासन आरक्षण कर सकता है, परन्तु यह कहीं नहीं कहा गया है कि आरक्षण करना अनिवार्य है। प्रोफेसर जीनगर अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता के अधिकार को आधार बनाकर इसे आरक्षण की अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, लेकिन वास्तविकता क्या है? ओबीसी के लोग आज पिछड़े नहीं हैं (हालांकि वे 1947 से पहले पिछड़े थे) और इसलिए उनके लिए आरक्षण पूरी तरह से अनुचित है। अब अगर एससी आरक्षण की बात की जाए तो यह सच है कि एससी को कई उच्च जाति के कई लोगों (और यहां तक कि कई ओबीसी) द्वारा नीची जाति के रूप में देखा जाता है और उनके साथ भेदभाव किया जाता है। फिर भी मैं शैक्षणिक संस्थानों या नौकरियों में प्रवेश हेतु उनके लिए किसी भी आरक्षण के खिलाफ हूं।
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सभी जातियों या धर्मों के गरीब बच्चों को विशेष सुविधाएं और मदद दी जानी चाहिए, ताकि उन्हें अवसरों का लाभ उठाने के लिए बराबरी के स्तर पर खड़ा किया जा सके। उदाहरण के लिए, गरीब माता-पिता के बच्चे के पास स्कूल की पाठ्य पुस्तकें खरीदने के लिए हो सकता है पैसे न हों, इसलिए उसे राज्य द्वारा पाठ्य पुस्तकें मुफ्त प्रदान की जानी चाहिए। यह जातिगत आधार पर आरक्षण से भिन्न है।
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(1) आरक्षण केवल 1% से कम अनुसूचित जाति (SC) को लाभ देता है, जबकि यह भ्रम पैदा करता है कि सभी अनुसूचित जाति के लोग इससे लाभान्वित होते हैं। भारत में अनुसूचित जाति के लगभग 22 करोड़ लोग हैं, लेकिन उनके लिए आरक्षित नौकरियां केवल कुछ लाख हैं। इसलिए बहुत कम अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा, और यहां तक कि ये ज्यादातर ‘क्रीमी लेयर’ से होंगे।
(2) आरक्षण दो कारणों से अनुसूचित जाति के लोगों को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है: (a) वे एससी के लिए मनोवैज्ञानिक बैसाखी के रूप में कार्य करता है। इस प्रकार उन्हें कमजोर बनाता है। दूसरे शब्दों में, एससी युवाओं में एक धारणा बन जाती है कि उन्हें अध्ययन करने और कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ऐसा किए बिना भी उन्हें प्रवेश या नौकरी मिल जाएगी।
अनुसूचित जातियों को आरक्षण की इस बैसाखी को दूर फेंकना चाहिए और उन्हें मर्द की तरह साहस और दृढ़ता से कहना चाहिए कि वे कड़ी मेहनत करेंगे और उच्च जातियों के साथ प्रतिस्पर्धा करके दिखाएंगे और सिद्ध करेंगे कि वे उच्च जातियों से बुद्धिमत्ता में कम नहीं हैं। (b) आरक्षण SC/OBC और उच्च जातियों के बीच राजनीतिक शासकों की ‘फूट डालो और राज करो’ (डिवाइड एंड रूल) की नीति में दुश्मनी का भाव पैदा करके सहयोग दे रहा है।। एक उच्च जाति का युवा, जिसे परीक्षा में 90% मिला, उसे प्रवेश या नौकरी से वंचित किया जाता है, जबकि अनुसूचित जाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार को केवल 40% अंक प्राप्त होने पर भी आरक्षण के आधार पर वह स्थान दे दिया जाता है। यह स्वाभाविक रूप से उच्च जाति के युवा के मन में जलन पैदा करता है।
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भारत की विशाल समस्याओं को केवल एक शक्तिशाली संयुक्त लोगों के संगठित संघर्ष से ही दूर किया जा सकता है जो देश को पूरी तरह से बदल देगा और इसे विकसित देशों की श्रेणी में ला देगा, लेकिन इसके लिए लोगों के बीच एकता अनिवार्य है। परंतु आरक्षण हमें विभाजित करता है। अनुसूचित जाति के लोगों को समझना चाहिए कि वे सामाजिक उन्नति के लिए अपने संघर्ष में सफल नहीं हो सकते हैं, यदि वे अन्य समाज से अलग-थलग रहेI उन्हें उच्च जातियों के प्रबुद्ध वर्ग के साथ हाथ मिलाना होगा, और उनके साथ लड़ना होगा। लेकिन यह तब तक मुश्किल है जब तक आरक्षण जारी है। (3) हमारे राजनेता अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए आरक्षण का उपयोग करते हैं।इसलिए आरक्षण का वास्तविक उद्देश्य एससी/ ओबीसी को लाभ पहुंचाना नहीं है, बल्कि राजनेताओं को लाभ पहुंचाना है।
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(4) जातिगत आरक्षण ने जाति व्यवस्था को नष्ट करने के बजाय और बढ़ावा दिया है। जाति एक सामंती (feudal) संस्था है, जिसे यदि भारत को प्रगति करनी है तो नष्ट करना होगा, लेकिन आरक्षण इसे और मज़बूत करता है। इन सभी तथ्यों को प्रोफेसर जीनगर ने नजरअंदाज कर दिया है, जिन्हें अपने विचारों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। मेरा मानना है कि अब वह समय आ गया है जब SC / OBC के लोगों को इस राजनीतिक धोखाधड़ी और शब्दों के इस फेर के पार देखना चाहिए और सभी जाति आधारित सभी तरह के आरक्षणों को समाप्त करने की मांग करनी चाहिए।
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