भोपाल: सत्ता जाने के बावजूद कांग्रेस इस वक्त सक्रिय नजर आ रही है। दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में पार्टी ने न सिर्फ तीन शहरों में बड़े कार्यक्रम किए बल्कि छोटे शहरों और जिलों में भी राज्य सरकार के विरोध का सिललिसा जारी है, इसकी वजह शायद ये है कि पार्टी अपने कार्यकर्ताओ को हर हाल में सक्रिय रखना चाहती है। सवाल ये है कि क्या कांग्रेस अभी से मिशन 2023 के लिए सक्रिय हो गई है?
ये बीते कुछ दिनों की तस्वीरें हैं, जब सरकार जाने के बाद कांग्रेस के तमाम नेता एक साथ दिखाई दिए। हर मौके पर गुटबाजी का आरोप झेलने वाली कांग्रेस ने खुद को एकजुट बताने की कोशिश की, सिर्फ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ही नहीं अरुण यादव, सुरेश पचौरी से लेकर विवेक तन्खा और अजय सिंह भी आंदोलन में शामिल हुए। जाहिर तौर पर सवाल उठते हैं कि क्या कांग्रेस अभी से 2023 की तैयारी में जुट गई है। क्या कांग्रेस निकाय चुनाव को विधानसभा चुनाव की तर्ज पर लड़ना चाहती है? कांग्रेस के बड़े नेता जानते हैं कि कार्यकर्ताओं में जोश बनाए रखने कि लिए ऐसे आंदोलन जरुरी है। क्या किसान आंदोलन के समर्थन इस तरह के प्रद्श करके पार्टी नेता आलकमान को अपनी ताकत का अहसास कराना चाहते है? वजह चाहे जो हो लेकिन इन आंदोलन से कांग्रेस के नेता खुश है और उन्हें लगता है कि इसका फायदा आने वाले दिनों में मिलेगा।
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15 साल बाद सरकार बनने के बावजूद 15 महीने में ही ही सरकार से बाहर होने वाली कांग्रेस अब हर स्तर पर बहुत ही सावधानी से काम कर रही है। सिंधिया समर्थक तो पार्टी छोड़ चुके हैं लिहाजा बाकी गुटों में संतुलन का पूरा ध्यान रखा जा रहा है और शायद यही वजह है कि खुद कमलनाथ ने नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष दोनों ही पद अपने पास रखें है। वैसे बीजेपी का मानना है कि कांग्रेस लाख कोशिश कर लें न तो निकाय चुनावों में न ही आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस वापसी कर पाएगी।
अगले विधानसभा चुनाव के हिसाब से देखें तो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की उम्र 75 के पार हो जाएगी। जबकि बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव और नई टीम के जरिए पीढीगत बदलाव के संकेत दे दिए हैं। ऐसे में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती नेतृत्व को लेकर है कि पार्टी अगला चुनाव किसकी अगुआई में लड़ेगी।
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