भोपाल: समय..काल…परिस्थिति और हालात कैसे भी हो लेकिन सियासत नहीं थमती। जिस वक्त हर पार्टी को एक दूसरे के साथ कोरोना को मात देने में एकजुट होना चाहिए आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। इस बार मुद्दा है कोरोना राहत के लिए कांग्रेस की टॉस्क फोर्स, जिसमें मध्यप्रदेश के किसी भी नेता का नाम नहीं है। बीजेपी इसके जरिए प्रदेश के कांग्रेस नेताओं पर निशाना साध रही है तो कांग्रेस टॉस्क फोर्स में शामिल मुकुल वासनिक को मध्यप्रदेश का बता कर अपने बचाव में जुटी है, लेकिन सवाल ये हैं कि इस वक्त सियासत जरुरी है या लोगों की जान?
कांग्रेस नेताओं ने कोरोना राहत के लिए बनी टॉस्क फोर्स क गठन किया है, लिस्ट में पहला नाम गुलाम नबी आजाद का है तो आखिरी नाम बीवी श्रीनिवास का। अगर नहीं है मध्यप्रदेश के किसी नेता का नाम और अब इसी लिस्ट के सहारे बीजेपी कांग्रेस पर हमला बोल रही है। गांधी परिवार पर लगातार हमला करने वाले गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का इस मुद्दे पर एक बार फिर आक्रमक दिख रहे हैं।
गृहमंत्री भले ही कांग्रेस नेताओं को कटघरे में खड़ा करें लेकिन कुछ सवाल तो हैं ही जाहिर तौर पर ये कांग्रेस का अंदरुनी मामला है तो इससे बीजेपी को क्या दिक्कत? क्या लिस्ट के सहारे बीजेपी कांग्रेस के बड़े नेताओं को राज्य में ही व्यस्त रखना चाहती है? वैसे ये सवाल भी है कि आखिर लिस्ट में मध्यप्रदेश का एक भी कांग्रेस नेता को क्यों नहीं रखा गया? जबकि छिंदवाड़ा में मदद करके पूर्व मुख्यमंत्री एक मॉडल सेट कर चुके हैं। हालात ये हैं कि छिंदवाड़ा में पॉजिटिविटी रेट पांच फीसदी से भी कम है। दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह के नेटवर्क से जुड़ा हर नेता अपने स्तर पर मदद करने में जुटा है फिर भी उन्हें इससे दूर रखा गया है। अरुण यादव, सुरेश पचौरी जैसे कई नेता है जो अपने स्तर पर राहत कार्य में जुटे में उन्हें भी मौका नहीं मिलना हैरान तो करता ही है। वैसे कांग्रेस नेताओं का कहना है कि टॉस्क फोर्स में मुकुल वासनिक का होना बताता है कि मध्यप्रदेश को भी प्रतिनिधित्व मिला है।
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वैसे कांग्रेस में भी जी–23 के बार बार सवाल उठाने से ऐसा नहीं लगता कि हालात अच्छे हैं। इस बीच 23 जून को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर भी फैसला होना है। जाहिर है सोनिया गांधी उससे पहले पार्टी में समन्वय और सहमति का माहौल बनाना चाहेगी।