रायपुर। आज छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जन्मदिन है। लोगों का विश्वास जीतने के बाद प्रदेश की सत्ता संभालकर सिर्फ आठ महीने में ही भूपेश बघेल ने विकास की एक अलग नींव रख दी है। नवा छत्तीसगढ़ के निर्माण में जुटे भूपेश बघेल के जन्मदिन पर उनके सियासी सफर पर आइए एक नजर डालते हैं।
भूपेश बघेल का जन्म 23 अगस्त 1961 को दुर्ग जिले के बेलौदी गांव में हुआ और रायपुर के साइंस कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। भूपेश बघेल की मां का नाम बिंदेश्वरी बघेल और पिता नंदकुमार बघेल है। भूपेश बघेल ने जमीनी स्तर से राजनीति के सफर की शुरुआत की। 1990 में वे दुर्ग जिला युवक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। फिर 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने पर 350 किलोमीटर की सद्भावना यात्रा निकाली।
1994 में मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बने। 32 साल की उम्र में वे अविभाजित मध्यप्रदेश में पहली बार विधायक बने। 1993 में पहली बार पाटन विधानसभा से जीतकर विधायक बने। फिर 1998 में दूसरी बार भी पाटन से निर्वाचित हुए। 2003 में तीसरी बार, 2013 में चौथी बार और 2018 में पांचवी बार पाटन से चुनाव जीते। वे मध्यप्रदेश के परिवहन मंत्री और परिवहन निगम के अध्यक्ष भी बने। 2003 से 2018 तक लगातार वे सशक्त विपक्ष की भूमिका में रहे और 2003 से 2008 के बीच वे विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष भी रहे।
2013 में सीएम भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली। उन्होंने बिखरी हुई पार्टी को एकजुट किया और छत्तीसगढ़ की तीन चौथाई सीटें जीतकर जीत का इतिहास रच दिया। छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरूवा, घुरवा, बारी के नारे को उन्होंने अपनी सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट बनाया है, और हर आंखों के सपनों को हकीकत में बदलकर प्रदेश की तकदीर संवार रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की सियासत का ये वो चेहरा है, जिसने दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत की ऐसी लकीर खींची कि पूरे देश में उनके नाम का डंका बज गया। प्रदेश की 90 में से 68 सीटें कांग्रेस ने जीती और भूपेश बघेल ने 15 साल का पार्टी का सत्ता का वनवास खत्म कर एक नया इतिहास रच दिया। 17 दिसंबर को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और शपथ लेने के साथ ही उन्होंने कई ऐसे फैसले कर ये साबित कर दिया कि वे वादों को पूरा करने वाले मुख्यमंत्री हैं।
शपथ के डेढ़ घंटे बाद ही 16.65 लाख किसानों की कर्जमाफी के आदेश दिए। साथ ही किसानों से 2500 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदी का फैसला किया। फिर चाहे वो बस्तर के लोहांडीगुड़ा में आदिवासियों की जमीन लौटाने का मामला हो या फिर छोटे भूखंडों की खरीदी-बिक्री पर लगी रोक हटाने का। स्कूल-कॉलेज में सहायक शिक्षक और प्रोफेसर की नियुक्ति का, उनके फैसलों से प्रदेश के हर वर्ग के लोगों को लाभ मिला।
जीरम कांड, नान घोटाले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने के साथ ही पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने का ऐलान भी उन्होंने किया। वहीं प्रदेश की संस्कृति और कला के साथ लोक त्यौहारों पर छुट्टी की सौगात दी। हरेली, तीज, करमा जयंती और छठ त्यौहार की छुट्टी दी गई। बिहार के बाद सिर्फ छत्तीसगढ़ ही ऐसा प्रदेश है, जहां पर छठ पर छुट्टी दी गई है।
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