क्योंकि कभी बहू को भी सास होना है, सम्मान की लड़ाई में हों सब बराबर | Because once the daughter-in-law has to be a mother-in-law

क्योंकि कभी बहू को भी सास होना है, सम्मान की लड़ाई में हों सब बराबर

क्योंकि कभी बहू को भी सास होना है, सम्मान की लड़ाई में हों सब बराबर

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Modified Date: November 28, 2022 / 11:05 PM IST
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Published Date: March 8, 2019 11:20 am IST

रायपुर । एक स्त्री अपने जीवन में कई किरदारों से गुजरती है, पैदा लड़की के रुप में होने पर बहिन और बेटी का फर्ज भी निभाती है,जब पत्नी बनती है तो जेठानी की भी भूमिका निभानी पड़ती है,किसी की देवरानी भी बनती है,ननद के तौर पर भी बातें सुनती है फिर मां इसके बाद सास और उसके बाद दादी और नानी। हर रिश्ते में कई मुकाम आते हैं,कभी सुनना भी पड़ता है तो कभी सख्त बनकर सबको संभालना भी पड़ता है,लेकिन सबसे ज्यादा मुसीबत तब होती है जब बुढ़ापा सिर पर होता है,और बहू नई अंगड़ाई ले रही होती है। आज के दौर में जब बहुएं सारे पैंतरे मायके से ही सीख कर आती हैं तो सासों की जान हलक में अटकी रहती है। कहीं बहु को कोई बात बुरी लग गई तो देहरी के अंदर की लाज पुलिस थाने की चौखट पार करने में देर नहीं करेगी। बुढ़ापा अच्छे से कटे इसलिए मां-पिता बेटे की चाह रखते हैं, पर समय बीतते -बीतते रिश्ते भी घिस जाते हैं। नई सोच और नए चाल-चलन में कब अपने पराए हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।

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घरेलू हिंसा बना नया हथियार
कानून ने महिलाओं की स्थिति देखते हुए उसे पराए घर में जाने के बाद कई सारे अधिकार दिए हैं। लेकिन जब अधिकार किसी दूसरे की निजता पर अतिक्रमण करने लगे तो फिर यही कानून नासूर बन जाता है, बहुओं को मिले इन अधिकारों से कई परिवार संकट में हैं,कई सारी जगहों पर बेगुनाह बुजुर्ग हवालात में हैं या फिर न्यायालय की देहरी पर चप्पलें घिस रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कहीं खुशी कहीं गम
पूरा विश्व अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा है। महिलाओं की आजादी और उनके अधिकार की बातें सुनने को मिल रही हैं। महिलाओं की गौरवा गाथा सुनने को मिल रही है,लेकिन बिलासपुर में ऐसी भी महिलाएं हैं जिन्हें महिला होते हुए भी महिला के रूप में सम्मान ना मिल पाने का दुख है। ये वो महिलाएं हैं जो बहू होने का फर्ज निभा चुकी हैं और अब उम्र के ढलते पड़ाव में सास की जिम्मेदारी निभा रही है। बिलासपुर की संस्था, सेव इंडियन फैमिली ने ऐसी महिलाओं को सामने रखा है जो फेमिनिज्म के नाम पर नई लड़कियों के द्वारा किए गए गलत व्यवहार का विरोध करती हैं। इन महिलाओं का कहना है कि समाज और शासन ने ये मान लिया है कि एक युवती या फिर एक बहू ही सिर्फ महिला हो सकती है, एक सास या ननद या फिर देवरानी या जेठानी को बहू के रूप में नहीं देखा जाता है। बुजुर्ग महिलाओं की मानें तो महिला के नाम पर उन महिलाओं को प्रताड़ित किया जा रहा है जिन्हें उम्र के ढलते पड़ाव में सहारे की जरूरत है। महिला दिवस का विरोध कर रही महिलाओं ने कानून बदलने की जरूरत बताई है । बुजुर्ग महिलाओं के मुताबिक हर महिला को समान सम्मान और अधिकार देने की बात पर लोगों को सामने आना चाहिए ।

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आखिर क्यों बनती है ऐसी स्थिति
जनरेशन गैप एक समस्या तो है ही वहीं पुरानी पीढ़ी अपना वर्चस्व नहीं छोड़ना चाहती और नई पीढ़ी अपने अधिकार । सुलभ होते कानून और बढ़ रही अर्निंग ने घरेलू विवादों को बढ़ा दिया है। लोग दूसरों के मामले देखकर उस दिशा में चल तो देते हैं पर राह में आने वाली मुसीबतों पर उनका ध्यान सब कुछ खत्म होने की कगार पर आ जाने के बाद ही जाता है। जरुरत इस बात की है समझदारी दिखाई जाए,अधिकारों को हासिल करने की बजाए उसे आशीर्वाद बनाया जाए, इसके लिए बस थोड़ा झुक जाइए , हो सकता है आपकी बढ़ रही ऊंचाई तक बुजुर्गों के हाथ ना पहुंच पा रहे हों। आपके विनम्र होते ही सारी समस्याएं खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी।

 

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