वर्षा आते ही जुड़ने लगते हैं सावन-भादों के स्तंभ, लक्ष्मीनारायण- भगवान राम से जुड़ी किवदंतियों को बल देते हैं महल में मौजूद साक्ष्य | Ashadha arrives as soon as the pillars of the Sawan-Bhadon begin to join Lakshminarayan - Emphasizes the legends related to Lord Rama

वर्षा आते ही जुड़ने लगते हैं सावन-भादों के स्तंभ, लक्ष्मीनारायण- भगवान राम से जुड़ी किवदंतियों को बल देते हैं महल में मौजूद साक्ष्य

वर्षा आते ही जुड़ने लगते हैं सावन-भादों के स्तंभ, लक्ष्मीनारायण- भगवान राम से जुड़ी किवदंतियों को बल देते हैं महल में मौजूद साक्ष्य

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:13 PM IST
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Published Date: June 8, 2020 8:55 am IST

किंवदतियों की मीनारें…किस्सों -कहानियों के महल….हर महल का अपना सुनहरा अतीत..और समृद्ध इतिहास । सबके सब अपनी -अपनी गाथाएं सुनाने के लिए सदियों से यूं ही तने खड़े हैं। सावन-भादों नाम के इन स्तंभों को देखकर सब हैरत में पड़ जाते हैं। कहते हैं कि सावन महीने के खत्म होते और भादों महीने के शुरू होते ही ये स्तंभ आपस में जुड़ जाते हैं। बुंदेलों और मुगल शासक जहांगीर की दोस्ती की निशानियां इस जहांगीर महल में आज भी अंकित हैं। तीन मंजिला इस भव्य महल को राजा बीरसिंह ने जहांगीर के स्वागत के लिए बनवाया था ।

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महल के प्रवेश द्वार पर दो झुके हुए हाथी स्वागत करने की मुद्रा में नज़र आते हैं। आसमान को चूमते इस महल में विराजे हैं राम राजा सरकार । भारत का यह एकमात्र मंदिर है जहां भगवान श्रीराम को राजा के रूप में पूजा जाता है । कहा जाता है कि राजा मधुकर को भगवान राम ने स्वप्न में दर्शन दिए और यहां अपना एक मंदिर बनवाने को कहा । जिसके बाद राजा ने राम के जन्मस्थल अयोध्या से उनकी मूर्ति मंगवाई और उसे मंदिर का निर्माण होने तक महल में रखवा दिया । लेकिन जब मूर्ति को उठाया गया तो मूर्ति हिली भी नहीं । इस तरह महल को ही भगवान राम का मंदिर बना दिया गया । भगवान राम को यहां भगवान मनाने के साथ राजा भी माना जाता है।

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ओरछा की एक और धरोहर है प्रवीन महल । ये जितना खूबसूरत है उतनी ही खूबसूरत यादें इससे जुड़ी हुई हैं । इस महल का निर्माण इंद्रमणि की खूबसूरत गणिका की याद में करवाया गया था । वह एक कवयित्री और संगीतकार थीं । सम्राट अकबर को जब उनकी सुंदरता के बारे में पता चला तो उन्हें दिल्ली लाने का आदेश दिया । लेकिन इंद्रमणि के प्रति प्रवीन के सच्चे प्रेम को देखकर अकबर ने उन्हें वापस भेज दिया । इस महल में उस अमर प्रेम कहानी की परछाइयां आज भी तैरती हैं।

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इसी तरह 1622 ईस्वी में बना लक्ष्मीनारायण मंदिर भी अपने आप में अद्भुत है। इसका निर्माण बीरसिंह देव ने कराया था । मंदिर में झांसी की लड़ाई के दृश्य और भगवान कृष्ण की आकृतियां बनी हुई हैं । चार भुजाधारी भगवान विष्णु को समर्पित है मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है, इसलिए इसे चतुर्भुज मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1558 से 1573 के बीच राजा मधुकर ने करवाया था । चारों दीवारों और बीच में फूलों का संसार है…जिसे फूलबाग के नाम से जाना जाता है। कभी ये फूलभाग बुंदेले राजाओं का आरामगाह हुआ करता था । फूलबाग में एक भूमिगत महल और 8 स्तंभों वाला मंडप है जो रियासत के ऐश्वर्य और समृद्धि की याद दिलाता है।
ये सारे दृश्य को शब्दों में व्यक्त करना लगभग असंभव है, इस धनाढ्य विरासत के देखने आपको ओरछा आना ही पड़ेगा।