मैहर वाली मां शारदा के अनन्य भक्त हैं आल्हा-ऊदल, आज भी दरबार खुलने पर चढ़े मिलते हैं ताज़ा फूल | Alha-udal is an exclusive devotee of Maihar's mother Sharda Even today, fresh flowers are offered when the court opens

मैहर वाली मां शारदा के अनन्य भक्त हैं आल्हा-ऊदल, आज भी दरबार खुलने पर चढ़े मिलते हैं ताज़ा फूल

मैहर वाली मां शारदा के अनन्य भक्त हैं आल्हा-ऊदल, आज भी दरबार खुलने पर चढ़े मिलते हैं ताज़ा फूल

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Modified Date: November 29, 2022 / 05:58 AM IST
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Published Date: April 17, 2020 5:23 am IST

धर्म।  मध्यप्रदेश के सतना जिले का एक छोटा सा शहर मैहर, जहां त्रिकूट पर्वत पर विराजी हैं मां शारदा भावनी। माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है। मैहर का मतलब है मां का हार। . माना जाता है कि यहां मां सती का हार गिरा था इसीलिए इसकी गणना शक्तिपीठों में की जाती है। 1 हजार से ज्यादा सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता के दर्शन होते हैं। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है।

मैहर वाली मां शारदा में है शक्ति का दरबार..ये है मन्नतों का दर…यहां है आस्था का पहाड़ जिस पर विराजी हैं आदि शक्ति भवानी मां शारदा। जी हां विध्य पर्वत श्रेणियों की गोद में अठखेलियां करती टमस नदी के तट पर त्रिकूट पर्वत मालाओं के बीच 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित मैहर वाली माता शारदा का दरबार..जहां हर दिन हजारों भक्त अपनी मुरादों का आंचल फैलाए..माता की चौखट पर मत्था टेकने पहुंचते हैं। कोई कभी निराश नहीं लौटता इस देहरी से, ये ना केवल मां शारदा का करामाती द्वार है बल्कि ये ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक हैं, कहा जाता है सतयुग के प्रमुख अवतार नरसिंह भगवान के नाम पर नरसिंह पीठ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि आल्हाखंड के नायक आल्हा और उदल दोनो भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे , यहां भोर होते ही सबसे पहली पूजा वो मां की करते थे ।

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सूरज की पहली किरण के साथ ही खुल जाता है मां शारदा का दरवाजा अपने भक्तों के लिए पर आज तक कभी भी ऐसा नहीं हुआ जो पहली पूजा किसी पंडित ने या श्रद्दालु ने की हो..क्योंकि आज भी माता के पट खुलते ही माता की पूजा हो चुकी होती है, मां के चरणों में फूल चढ़ चुका होता है।
ये चमत्कार नहीं आस्था की ताकत है कि आल्हा उदल की भक्ति का रंग यहां हर दिन यहां देखने को मिलता है। मौसम या मौका कोई भी हो माता की ये पहाड़ी कभी भी सूनी नहीं होती। आस्था के मेले यहां हर दिन लगते हैं बिना रुके ये अनवरत आज तक चले आ रहे हैं। नवरात्र के समय में तो भक्तों की कतार इतनी लंबी होती है कि सम्हालने के लिए पुलिस और प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं ।

मां शारदा के इस मंदिर से जुड़ी एक ये भी मान्यता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में जन्मी सति को उनके पिता ने यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं दिया था और फिर भी उनके जाने के बाद उनके पिता ने शिव का बहुत अपमान किया जिसे सती बर्दाश्त नहीं कर सकीं और यज्ञ कुंड में ही अपनी आहुति दे दी और जब शिव को पता लगा तो उन्होंने माता सती के शरीर को लेकर तांडव किया जो अलग अलग जगहों पर छिन्न भिन्न होकर गिरे वहीं पर शक्तिपीठ स्थापित हो गए। मैहर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां त्रिकूट पर्वत पर माई का हार गिरा था इस लिए इसका नाम पड़ा माईहार जो बाद में मैहर के नाम से प्रसिद्द हो गया। तंत्रचूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गयी है। देवीभागवत में 108 शक्तिपीठों का उल्लेख है, तो देवीगीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गयी है। परम्परागत रूप से भी देवीभक्तों और सुधीजनों में 51 शक्तिपीठों की विशेष मान्यता है। माता के मंदिर में हर दिन श्रद्दालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है पर नवरात्र के दिनों में ये संख्या लाखों तक पहुंच जाती है। मंदिर में आस्था की ज्योति भी जगमगाती है।

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स्थानीय परंपरा के अनुसार पता चलता है कि योद्धाओं आल्हा और उदल, जिन्होंने पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध किया था इस जगह के साथ जुड़े रहे हैं। दोनों भाई शारदा देवी के बहुत अनुयायी थे। कहा जाता है कि आल्हा उदल को शारदा देवी के आशीर्वाद से अर्मत्व का वरदान है। आल्हा मां को ‘शारदा माई’ कह कर बुलाते थे और तब से माता शारदा माई’ के नाम से लोकप्रिय हो गईं। आज भी मंदिर की तलहटी में आल्हा उदल का तालाब और अखाड़ा देखा जा सकता है पहाड़ी देख सकते हैं। मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर ये अखाड़ा है जहां वे कुश्ती का अभ्यास किया करते थे। आल्हा उदल को गायकी में भी खास अंदाज मिला है जहां उनकी बहादुरी के किस्से गाए जाते हैं जिसे आल्हा गायन के रुप में जाना जाता है।

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मंदिर परिसर में एक पुरातन गुफा मंदिर भी हैं जहां सालों से अंखड़ ज्योति जल रही है ऐसा कहां जाता है कि अंखड ज्योति के दर्शन मात्र से दुखों का अंधेरा दूर हो जाता है। हर दिन आने वाले लाखों के श्रद्धालु के लिए आज प्रशासन के तरफ से सुविधाओं के लिए खास इंतजाम किए गए हैं। चाहे तो श्रद्धालु पैदल सीढ़ियों से चढ़कर जा सकते हैं। सड़क मार्ग से जा सकते है या फिर वो रोप वे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं । मंदिर के पुजारी परिवार की तरफ से ही यहां श्रद्धालुओं के लिए हर दिन निशुल्क प्रसाद का वितरण किया जाता है जिसमें माता को चढ़ने वाले 21 प्रकार के भोग को भी शामिल किया जाता है ।

हवाई मार्ग- सतना से 160 किमी की दूरी पर जबलपुर और 140 किमी की दूरी पर खजुराहो एयरपोर्ट है। वहां तक हवाई मार्ग से आकर सड़क मार्ग से सतना पहुंचा जा सकता है। रेल मार्ग- मैहर जिले के लिए देश के कई शहरों से ट्रेन चलती है। सड़क मार्ग- मैहर जिला देश के कई शहरों के मुख्य सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इस कारण यहां बस या निजी वाहन से भी पहुंचा जा सकता है।