नयी दिल्ली, चार जनवरी (भाषा) कृषि कानूनों के खिलाफ एक महीने से ज्यादा समय से चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिए किसान संगठनों और तीन केंद्रीय मंत्रियों के बीच सातवें दौर की वार्ता सोमवार को जारी है लेकिन किसान संगठनों के प्रतिनिधि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर कायम हैं ।
सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्षों ने एक घंटे की बातचीत के बाद भोजनावकाश लिया । सरकार इन कानूनों को निरस्त नहीं करने के रूख पर कायम है और समझा जाता है कि उसने इस विषय को विचार के लिये समिति को सौंपने का सुझाव दिया है।
दोनों पक्षों के बीच एक घंटे की बातचीत में अनाज की खरीद से जुड़ी न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को कानून मान्यता देने के किसानों की महत्वपूर्ण मांग पर अभी चर्चा नहीं हुई है।
किसान संगठन के प्रतिनिधि अपने लिये खुद भोजन लेकर आये थे जो ‘लंगर’ के रूप में था । हालांकि 30 दिसंबर की तरह आज केंद्रीय नेता लंगर के भोजन में शामिल नहीं हुए । और भोजनावकाश के दौरान अलग से चर्चा करते रहे ।
बैठक में हिस्सा ले रहे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने ‘पीटीआई भाषा’ से फोन पर कहा कि पहले घंटे की बातचीत में मुख्य रूप से तीन कानूनों के संबंध में चर्चा हुई।
उन्होंने कहा, ‘‘ हमारी मांग इन कानूनों को निरस्त करने की है। हम समिति गठित करने जैसे किसी अन्य विकल्प पर सहमत नहीं होंगे । ’’
यह पूछे जाने पर कि क्या बैठक में कोई ठोस परिणाम निकलेगा, टिकैत ने कहा, ‘‘ मैं नहीं समझता । विरोध प्रदर्शन समाप्त करने और हमारे घरों को लौटने के लिये उन्हें कानून को वापस लेना होगा । ’’
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हजारों की संख्या में किसान कृषि संबंधी तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास प्रदर्शन स्थल पर भारी बारिश और जलजमाव एवं जबर्दस्त ठंड के बावजूद किसान डटे हुए हैं ।
टिकैत ने कहा कि बातचीत अभी जारी है और एमएसनी को कानून वैधता देने के दूसरे एजेंडे पर अभी चर्चा नहीं हुई है।
एक अन्य संगठन महिला किसान अधिकार मंच की प्रतिनिधि कविता कुरूंगटी ने कहा, ‘‘ गतिरोध जारी है क्योंकि सरकार कानून के फायदे के बारे में चर्चा कर रही है और हम इन कानूनों को निरस्त करने को कह रहे हैं । ’’
भोजनावकाश के दौरान उन्होंने कहा कि एमएसपी पर अभी चर्चा नहीं हुई है ।
गौरतलब है कि ये कानून सितबर 2020 में लागू हुए और सरकार ने इसे महत्वपूर्ण कृषि सुधार के रूप में पेश किया और किसानों की आमदनी बढ़ाने वाला बताया ।
बैठक के दौरान सरकार ने तीनों कृषि कानूनों के फायदे गिनाये जबकि किसान संगठन इन कानूनों को वापस लेने पर जोर देते रहे ताकि नये कानून के बारे में उन आशंकाओं को दूर किया जा सके कि इससे एमएसपी और मंडी प्रणाली कमजोर होगा और वे बड़े कारपोरेट घरानों की दया पर होंगे ।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री एवं पंजाब से सांसद सोम प्रकाश ने विज्ञान भवन में 40 किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत शुरू की।
सूत्रों ने बताया कि मौजूदा प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को श्रद्धांजलि देने के साथ इस बैठक की शुरुआत हुई।
इससे पहले, सरकार और किसान संगठनों के बीच छठे दौर की वार्ता 30 दिसंबर को हुई थी। उस दौरान पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने और बिजली पर रियायत जारी रखने की दो मांगों पर सहमति बनी थी।
हालांकि, तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने और फसल की खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था को लेकर कानूनी गारंटी पर अब तक कोई सहमति नहीं बन पायी है।
सूत्रों ने बताया कि तोमर ने रविवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की और मौजूदा संकट के जल्द समाधान के लिए सरकार की रणनीति पर चर्चा की।
उन्होंने बताया कि तोमर ने सिंह के साथ संकट का समाधान निकालने के लिए ‘बीच का कोई रास्ता’ निकालने को लेकर सभी मुमकिन विकल्पों पर चर्चा की ।
सरकार ने कहा है किसानों की आशंकाएं निराधार हैं और कानूनों को निरस्त करने से इनकार किया है।
कई विपक्षी दलों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने भी किसानों का समर्थन किया है, वहीं कुछ किसान संगठनों ने पिछले कुछ हफ्तों में कृषि मंत्री से मुलाकात कर तीनों कानूनों को अपना समर्थन दिया।
भाषा दीपक दीपक उमा
उमा
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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