सरकार-किसान संगठनों के बीच बैठक : किसान नेताओं के लंगर में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री | Meeting between government-farmers' organizations: Union Ministers attend anchor of farmer leaders

सरकार-किसान संगठनों के बीच बैठक : किसान नेताओं के लंगर में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री

सरकार-किसान संगठनों के बीच बैठक : किसान नेताओं के लंगर में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:43 PM IST, Published Date : December 30, 2020/1:11 pm IST

नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) नए कृषि कानूनों पर गतिरोध सुलझाने के लिए बुधवार को छठे दौर की वार्ता के दौरान प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा भोजन के लिए लंगर के आयोजन में तीन केंद्रीय मंत्री भी शामिल हुए।

विज्ञान भवन में वार्ता आरंभ होने के करीब दो घंटे बाद बैठक स्थल के पास एक वैन से किसानों के लिए लंगर पहुंचाया गया। वार्ता के दौरान कुछ देर का भोजनावकाश रखा गया। इस दौरान किसान नेताओं के साथ मंत्रियों ने भी लंगर खाया।

बैठक स्थल पर मौजूद सूत्रों ने बताया कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, खाद्य और रेल मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश ने भी ब्रेक के दौरान किसान नेताओं के साथ लंगर खाया।

किसान नेताओं ने कहा कि बातचीत जारी है और एजेंडा पर बिंदुवार चर्चा की जा रही है।

पिछली कुछ बैठकों के दौरान किसान नेताओं ने खुद अपने भोजन, चाय-नाश्ते की व्यवस्था की थी और सरकार ने भोजन के लिए जो आयोजन किया था, वहां खाने से इनकार कर दिया था।

बैठक शुरू होने से पहले कुछ किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि देश के कुछ भागों में किसान कीमतें गिरने के कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार उनकी मांगें नहीं मानेगी, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता राकेश टिकैत ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘उत्तरप्रदेश में नए कृषि कानून लागू होने के बाद उपज की कीमत 50 प्रतिशत गिर गयी। एमएसपी से कम पर उपज बेची जा रही है। धान की 800 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक्री हो रही है। हम बैठक में इन मुद्दों को उठाएंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जब तक मांगे नहीं मानी जाएंगी, तब तक हम दिल्ली छोड़कर नहीं जाएंगे। हम (दिल्ली) बॉर्डर पर ही नया साल मनाएंगे।’’

पंजाब के किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा नए कानूनों के लागू होने के बाद गुना और होशंगाबाद में फर्जीवाड़ा के मामलों से संबंधित मीडिया की खबरों के पोस्टर लेकर आए।

सिरसा ने कहा, ‘‘हमारा कोई एजेंडा नहीं है। सरकार यह कहकर किसानों को बदनाम कर रही है कि वे वार्ता के लिए नहीं आ रहे हैं। हमने वार्ता के लिए 29 दिसंबर की तारीख दी थी। हमने अपना स्पष्ट एजेंडा उन्हें बता दिया लेकिन सरकार जोर दे रही है कि कानून किसानों के लिए लाभकारी है।’’

उन्होंने कहा कि नए कानूनों के लागू होने के बाद से फर्जीवाड़ा के कई मामले आ रहे हैं ।

केंद्रीय मंत्रियों और 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच विज्ञान भवन में दोपहर ढाई बजे के करीब बैठक शुरू हुई। सरकार की तरफ से तोमर नेतृत्व कर रहे हैं और उनके साथ गोयल और प्रकाश भी हैं। प्रकाश पंजाब से सांसद हैं।

कुछ दिनों के अंतराल के बाद दोनों पक्षों के बीच छठे दौर की वार्ता आरंभ हुई है। पिछली बैठक पांच दिसंबर को हुई थी।

आंदोलन कर रहे किसान अपनी मांगों पर डटे हुए हैं कि केवल तीनों नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की प्रक्रिया और एमएसपी पर कानूनी गारंटी प्रदान करने समेत अन्य मुद्दों पर ही चर्चा होगी।

सोमवार को केंद्र ने सितंबर में लागू तीनों नए कृषि कानूनों पर गतिरोध दूर करने के लिए ‘‘खुले मन’’ से ‘‘तार्किक समाधान’’ तक पहुंचने के लिए यूनियनों को 30 दिसंबर को वार्ता के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन, ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ ने मंगलवार को अपने पत्र में कहा था कि एजेंडा में तीनों विवादित कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी देने के विषय को शामिल करना चाहिए।

छठे दौर की वार्ता नौ दिसंबर को ही होने वाली थी लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यूनियन के कुछ नेताओं के बीच अनौपचारिक बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकलने पर बैठक रद्द कर दी गयी थी।

शाह से मुलाकात के बाद सरकार ने किसान संगठनों को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें नए कानून में सात-आठ संशोधन करने और एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने की बात कही थी। सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने से इनकार कर दिया था।

कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से हजारों किसान राष्ट्रीय राजधानी की अलग-अलग सीमा पर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन में ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के किसान हैं।

सरकार ने कहा है कि इन कानूनों से कृषि क्षेत्र में सुधार होगा और किसानों की आमदनी बढ़ेगी लेकिन प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों को आशंका है कि नए कानूनों से एमएसपी और मंडी की व्यवस्था ‘कमजोर’ होगी और किसान बड़े कारोबारी घरानों पर आश्रित हो जाएंगे।

भाषा आशीष मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)