मुंबई, 10 सितंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र के जिला समाज कल्याण अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे कोविड-19 महामारी के बीच दिव्यांग छात्रों के लिए चल रहे डिजिटल शिक्षा कार्यक्रम का आकलन करें।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त की अध्यक्षता वाली पीठ ने जिला समाज कल्याण अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अगले दो सप्ताह में ऐसे छात्रों को डिजिटल शिक्षा देने वाले केंद्रों का ”औचक दौरा” करें और यह आकलन करें कि प्रणाली कितनी बेहतर तरीके से काम कर रही थी और क्या वहां कोई कमियां तो नहीं हैं?
पीठ एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
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एनजीओ के वकील उदय वारुंजिकर ने याचिका में कोविड-19 अनलॉक के चरण के दौरान स्कूल एवं कॉलेजों के दिव्यांग छात्रों के लिए राहत का अनुरोध किया।
महाराष्ट्र सरकार ने पिछले महीने उच्च न्यायालय में शपथपत्र दाखिल किया था, जिसमें बताया गया था कि सरकार ने केंद्र के ‘दीक्षा’ मंच के अंतर्गत दिव्यांग छात्रों के लिए ”ई-लर्निंग” की शुरुआत की थी।
राज्य ने कहा था कि उसने शिक्षा केंद्रों की स्थापना की है जहां शिक्षक ऑनलाइन पढ़ा सकते हैं।
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साथ ही ऐसी कक्षाओं का लाभ उठाने के लिए छात्रों के वास्ते एक मोबाइल ऐप भी शुरू किया गया था।
हालांकि, बृहस्पतिवार को वकील उदय ने अदालत को बताया कि राज्य के करीब 70 फीसदी छात्र ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जहां उन्हें इंटरनेट की धीमी गति के चलते परेशानी का सामना करना पड़ रहा था।
उन्होंने अदालत से कहा कि इस कार्य में लगे शिक्षकों को भी राज्य की ओर से प्रशिक्षित नहीं किया गया।
अदालत ने अधिकारियों को अपनी आकलन रिपोर्ट राज्य के सामाजिक न्याय एवं विशेष सहायता विभाग के संयुक्त सचिव को सौंपने का निर्देश दिया जोकि बाद में रिपोर्ट का ब्योरा देते हुए उच्च न्यायालय में एक शपथपत्र दाखिल करेंगे।
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10 hours ago