कैनबरा, 25 मई ( द कन्वर्सेशन) मनुष्यों और वन्यजीवों में बढ़ते बांझपन के साक्ष्य लगातार मिल रहे हैं। हमारे पर्यावरण में मौजूद रसायनों को इसका बड़ा कारण बताया जाता है लेकिन नये अनुसंधान में सामने आया है कि जानवरों की प्रजनन क्षमता पर एक और बड़ा खतरा मंडरा रहा है वह है जलवायु परिवर्तन।
यह बात सब जानते हैं कि सहनशक्ति से बढ़ कर तापमान के चरम पर चले जाने के कारण जानवर मर सकते हैं। हालांकि, नये अनुसंधान में पाया गया कि कुछ प्रजातियों के नर कम तापमान पर भी बांझ हो सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रजातियों का फैलाव संभवत: उस तापमान से सीमित हो सकता है जिसपर वे प्रजनन करते हैं बजाय कि उन तापमानों के जिनपर वे जिंदा रह सकते हैं।
पढ़ें- राज्य के सभी सरकारी अस्पताल में तैनात किए जाएंगे ‘म…
ये परिणाम महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये बताते हैं कि जानवरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को हम कम कर आंक रहे हैं और यह समझने में नाकाम रहे हैं कि कौन सही प्रजातियां लुप्त हो सकती हैं। अनुसंधानकर्ता कुछ समय सम इस बात से वाकिफ थे कि पशुओं की प्रजनन क्षमता अधिक तापमान के प्रति संवेदनशील होती है।
पढ़ें- रिटायर्ड एसआई की बेरहमी से हत्या, घर पर हाथ-पैर बंध…
उदाहरण के लिए, अनुसंधान दर्शाता है कि प्रभावशाली ढंग से दो डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से प्रवालों के अंडों के आकार और शुक्राणुओं का उत्पादन घट जाता है। और भंवरे एवं मक्खियों की प्रजातियों में, प्रजनन का सफल होना उच्च तापमानों पर बहुत तेजी से घट जाता है।
पढ़ें- भाटापारा में चाइल्ड पोर्नोग्राफी केस में 2 आरोपी गि…
उच्च तापामन गायों, सूअरों, मछलियों और पक्षियों में भी शुक्राणु बनने या प्रजनन की क्षमता को प्रभावित करते हैं। हालांकि, बांझपन के लिए जिम्मेदार तापमानों को उन अनुमानों में शामिल नहीं किया है जो यह बताते हों कि जलवायु परिवर्तन किस प्रकार से जैव विविधता को प्रभावित करता है। इस अनुसंधान में इसी का जवाव देने की कोशिश की गई है।
पढ़ें- देश में 41 दिनों में सबसे कम 1,96,427 नए केस, 1 दिन…
ब्रिटेन, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया के अनुसंधानकर्ताओं की तरफ से किए गए इस अध्ययन में मक्खियों की 43 प्रजातियों का परीक्षण किया गया ताकि यह जांचा जा सके कि नर प्रजनन क्षमता का निर्धारण करने वाले तापमान मक्खियों के वैश्विक वितरण का अनुमान बताने के लिए उन तापमानों की तुलना में बेहतर हैं जिनपर एक वयस्क मक्खी की मौत हो जाती है। इन तापमानों को उनकी “जीवित रह सकने की सीमा” के तौर पर भी जाना जाता है। अनुसंधानकर्ताओं ने मक्खियों को चार घंटे तक ताप में रखा, उन तापमानों पर, जो मामूली से लेकर घातक थे। इन आंकड़ों से उन्होंने दोनों तापमानों का अनुमान लगाया जो 80 प्रतिशत मक्खियों के लिए घातक होते हैं और दूसरा जिसपर जीवित बचने वाले प्रतिशत जीवित नर मक्खियां बांझ हो जाते हैं।
पढ़ें- रिटायर्ड एसआई की बेरहमी से हत्या, घर पर हाथ-पैर बंध…
अध्ययन के ये परिणाम मनुष्य जैसे स्तनधारियों समेत अन्य प्रजातियों पर भी लागू होंगे या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन निश्चित तौर पर जानवरों में ऐसा प्रभाव देखकर यह संभव हो सकता है। किसी भी तरह, जब तक वैश्विक तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लगता है, जानवरों की प्रजनन क्षमता घटते जाने की आशंका है। इसका मतलब है कि पूर्व के अनुमान की तुलना में धरती पर और प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं।
PM Modi Returns India: दो दिवसीय कुवैत दौरे से भारत…
14 hours agoDinga Dinga Virus: मरीजों को नाचने पर मजबूर कर रही…
14 hours agoPM Modi Leaves For Delhi From Kuwait: पीएम मोदी की…
17 hours ago