भोपाल। पूर्व मंत्री अरुण यादव ने दुष्कर्म के 200 आरोपियों को पैरोल देने के फैसले पर सरकार पर निशाना साधा है। अरुण यादव ने इसे समाज पर ज्यादती बताया है। उन्होंने आगे कहा है कि ये उन परिवारों के साथ ज्यादती है जिनके साथ घटनाएं हुई हैं। बलात्कार के मामलों में राज्य पहले से ही नम्बर वन है। ऐसे बलात्कारियों को छोड़ने के बजाय उन पर सख्ती बरती जाए।
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बता दें प्रदेश की जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे दुष्कर्मियों को कोरोना महामारी में पैरोल पर रिहा करने की तैयारी है। 5 जून को जेल मुख्यालय ने सभी जेल अधीक्षकों को इस संबंध में पत्र लिखा है। भोपाल की सेंट्रल जेल में ऐसे 400 बंदी हैं, जिसमें 100 बंदी ऐसे हैं जो नाबालिग बच्चियों से ज्यादती के मामले में सजा काट रहे हैं।
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हालांकि, इन बंदियों को भी पैरोल का अधिकार है, लेकिन जेल मुख्यालय का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 2015 के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ऐसे बंदी जिन्होंने दुष्कर्म का अपराध किया है और जिन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसियों के मामले में सजा हुई है, उन्हें रिहा नहीं किया जा सकता। इनके अलावा जो भी बंदी हैं, उन्हें राज्यपाल धारा 161 के तहत सजा से राहत दे सकते हैं। फिलहाल सरकार के फैसले से पीड़ित परिवार नाराज हैं।
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उनका कहना है कि पैरोल अवधि की गणना सजा में नहीं होना चाहिए। पैरोल पर छोड़ने से पहले जेल प्रबंधन को पीड़ित परिवार का भी पक्ष जानना चाहिए।
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हालांकि डीआईजी जेल मुख्यालय संजय पांडे का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही बंदियों को पहले 60 दिन और बाद में 30 दिन की पैरोल स्वीकृत है। दुष्कर्म मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे बंदियों की पैरोल पर रोक नहीं है, उन्हें पहले भी पैरोल दी जाती रही है। प्रत्येक मामले में मेरिट के आधार पर पैरोल तय होती है।