नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार देश के कई जटिल और पुराने मुद्दों का समाधान कर चुकी है। इनमें राम मंदिर, जम्म कश्मीर से धारा 370, तीन तलाक, और अब नागरकिता कानून संशोधन विधेयक है। कांग्रेस शासन काल में इन अहम मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया था। लेकिन मोदी सरकार ने इन्हें एक के बाद सभी का समाधान निकाल दिया। अपने घोषणा पत्र के मुताबिक किए गए हर वादों को पूरा करती जा रही है। अब लोगों की नजर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आ अटकी है। हालांकि इस मसले पर 2 मार्च को केंद्र सरकार दिल्ली हाईकोर्ट में अपना जवाब पेश करेगी।
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UCC लागू करने वाला देश का पहला राज्य
सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी लोगों के लिए एकसमान नागरिक संहिता लागू न होने पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि हिंदू लॉ 1956 में बनाया गया लेकिन 63 साल बीत जाने के बाद भी पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रयास नहीं किए गए। हालांकि इस दौरान कोर्ट ने गोवा की मिसाल दी। दरअसल, गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है।
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देश में केवल गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया गया है। गोवा में जिन मुस्लिम पुरुषों की शादियां पंजीकृत हैं, वे बहुविवाह नहीं कर सकते हैं। इस्लाम को मानने वालों के लिए मौखिक तलाक (तीन तलाक) का भी कोई प्रावधान नहीं है।
ऐसे में यह समझना अहम है कि आखिर अकेले गोवा में कॉमन सिविल कोड कैसे लागू है? दरअसल, 1961 में भारत में शामिल होने के बाद गोवा, दमन और दीव के प्रशासन के लिए भारतीय संसद ने कानून पारित किया- गोवा, दमन और दीव एडमिनिस्ट्रेशन ऐक्ट 1962 और इस कानून में भारतीय संसद ने पुर्तगाल सिविल कोड 1867 को गोवा में लागू रखा। इस तरह से गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई। शुक्रवार को पीठ ने भी कहा कि गोवा राज्य में पुर्तगीज सिविल कोड 1867 लागू है, जिसके तहत उत्तराधिकार को लेकर कानून स्पष्ट हैं।
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गोवा में लागू समान नागरिक संहिता के अंतर्गत वहां पर उत्तराधिकार, दहेज और विवाह के संबंध में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई के लिए एक ही कानून है। इसके साथ ही इस कानून में ऐसा प्रावधान भी है कि कोई माता-पिता अपने बच्चों को पूरी तरह अपनी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते। इसमें निहित एक प्रावधान यह भी कि यदि कोई मुस्लिम अपनी शादी का पंजीकरण गोवा में करवाता है तो उसे बहुविवाह की अनुमति नहीं होगी।
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यूनिफॉर्म सिविल कोड से जुड़ी याचिका में तीसरे जिस मुख्य बिंदु को रखा गया है वह बच्चों के एडॉप्शन और उनके पालन-पोषण से जुड़ा हुआ है। यहां भी मांग की गई है कि बच्चों को गोद लेने के लिए कानूनी प्रक्रिया के तहत काम हो ना कि धार्मिक आधार पर तय की गई मान्यताओं से।
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उत्तराधिकार से जुड़े नियमों पर भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की मांग की गई है. 5वीं सबसे अहम मांग शादी की उम्र को लेकर है। याचिका में मांग की गई है कि महिला और पुरुष दोनों के लिए शादी की उम्र एक ही होनी चाहिए. भारत में फिलहाल महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल और पुरुषों के लिए 21 वर्ष तय की गई है, अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है, तो दोनों के लिए ही यह उम्र एक जैसी हो जाएगी।
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गौरतलब है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू करने से जुड़ी याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई चली। इस दौरान केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगा। केंद्र ने कोर्ट से कहा कि इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने के लिए उन्हें कुछ और वक्त की जरूरत है। केंद्र ने कोर्ट से कहा कि यह एक अहम मुद्दा है, सरकार इस मामले से जुड़े सभी बिंदुओं पर गौर करने के बाद ही कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करना चाहती है। दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय देते हुए मामले की सुनवाई 2 मार्च तक के लिए टाल दी है।
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