कारगिल युद्ध के 20 बरस, अदम्य साहस के लिए इस सपूत को मिला था परमवीर चक्र.. जानिए | 20 years of Kargil war

कारगिल युद्ध के 20 बरस, अदम्य साहस के लिए इस सपूत को मिला था परमवीर चक्र.. जानिए

कारगिल युद्ध के 20 बरस, अदम्य साहस के लिए इस सपूत को मिला था परमवीर चक्र.. जानिए

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:47 PM IST, Published Date : July 25, 2019/6:13 am IST

नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल की लड़ाई को 20 बरस पूरे हो गए हैं। 1999 में 60 दिनों तक चली इस लड़ाई में कारगिल पर भारत का तिरंगा लहराया था। इस लड़ाई में दोनों देशों के कई सैनिक का लहू बहा था। कारगिल फतह के बाद से भारत में इस दिन को विजय दिवस के नाम से मनाया जाता है।

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दोनों देशों के बीच लड़ी गई यह लड़ाई 3 मई से 26 जुलाई 1999 तक चली थी। कारगिल युद्ध को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है। कारगिल सेक्टर को मुक्त कराने के लिए यह नाम दिया गया था। 1999 के बाद से हर साल यह दिन भारत में कारगिल विजय दिवस के नाम से मनाया जाता है। इस लड़ाई में दोनों देशों के सैकड़ों सैनिक मारे गए। युद्ध के मैदान पर शौर्य दिखाते हुए भारत को इसमें विजय मिली थी। भारत में 26 जुलाई को विजय दिवस के तौर पर मनाते हैं।

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26 जुलाई, 1999 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। इसी दिन कारगिल चोटी को भारतीय सेना के जांबाजों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़कर मुक्त कराया था। ऑपरेशन विजय की 20वीं वर्षगांठ शुक्रवार को मनाई जाएगी। शहीद जवानों की शहादत को याद किया जाएगा।

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सीतापुर के कमलापुर में जन्मे कैप्टन मनोज पांडेय कारगिल युद्ध के मुख्य नायकों में शामिल हैं। उन्हें 4 मई, 1999 को कारगिल में भारतीय चौकियों को घुसपैठियों से खाली कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वह पांच नंबर प्लाटून का नेतृत्व कर रहे थे। कैप्टन पांडेय बटालिक सेक्टर में दुश्मनों पर जीत हासिल करते हुए आगे बढ़ रहे थे। उन्हें खालूबार तक हर पोस्ट को जीतने के ऑर्डर थे। इस दौरान उन्हें भयंकर गोलीबारी का सामना करना पड़ा, पर वह आगे बढ़ते गए। उन्होंने दुश्मनों के चार बंकरों को नेस्तनाबूद कर दिया। इसी दौरान वह दुश्मन की गोली का शिकार हो गए।

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कैप्टन मनोज पांडेय लखनऊ के एकलौते सैन्य अधिकारी रहे, जिन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया। कैप्टन मनोज उत्तर प्रदेश सैनिक स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से 1997 में गोरखा राइफल्स में कमीशंड हुए। पिता गोपीचंद पांडेय बताते हैं कि बेटे की शहादत पर कैप्टन मनोज पांडेय चौराहा बनाया गया है।

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