Ghata Rani Mata Rajasthan: एक ऐसा मंदिर जो नवरात्रि में सात दिन रहता है बंद, सिर्फ अष्टमी के दिन खुलते हैं कपाट, जुड़ी है पौराणिक कथा |

Ghata Rani Mata Rajasthan: एक ऐसा मंदिर जो नवरात्रि में सात दिन रहता है बंद, सिर्फ अष्टमी के दिन खुलते हैं कपाट, जुड़ी है पौराणिक कथा

Ghata Rani Mata Rajasthan: एक ऐसा मंदिर जो नवरात्रि में सात दिन रहता है बंद, सिर्फ अष्टमी के दिन खुलते हैं कपाट, जुड़ी है पौराणिक कथा

Edited By :   Modified Date:  April 5, 2024 / 09:02 AM IST, Published Date : April 5, 2024/9:02 am IST

Ghata Rani Mata Rajasthan: इस साल चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 9 अप्रैल दिन मंगलवार से हो रहा है। नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना करते हैं और मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं। जिसका समापन 17 अप्रैल को किया जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इन नौ दिनों में पूरे विधि विधान और आस्था से आदि शक्ति मां दुर्गा की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नवरात्रि के दिनों में मंदिरों मे भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन माता रानी का एक ऐसा मंदिर है जो नवरात्रि के 7 दिनों तक बंद रहता है और अष्टमी के दिन इस मंदिर के कपाट खुलते हैं।

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राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में एक ऐसा शक्ति पीठ है, जो नवरात्रि में सात दिन बंद रहता है। यह मंदिर जहाजपुर की घाटा रानी माताजी का है, जो भक्तों के लिए एक बड़ा आस्था का केंद्र बन चुका है लेकिन इस मंदिर के गर्भ गृह दर्शन के लिए 7 दिन बंद रहता है। इसके बाद अष्टमी को पट खुलते है, तब भक्त माता के दर्शन करते हैं। इस मंदिर के पट दोनों नवरात्रि में घट स्थापना होने के पहले अमावस्या की संध्या आरती के साथ ही बंद कर दिए जाते हैं।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, पुराने समय में एक ग्वाला जंगलों में गायें चराने जाया करता था। यहां नदी के किनारे गायें दूध पिया करती थी। वहीं, ऊंची पहाड़ी से एक कन्या आकर गायों का दूध पी जाया करती थी। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। ऐसे में गायों के मालिक ने ग्वाले को कहा कि मैं तेरा मेहनताना काट दूंगा क्योंकि गायों का दूध तो तुम ही निकाल लेते हो। इस बात से परेशान ग्वाला एक दिन रखवाली के लिए पहाड़ के पीछे छिपकर बैठ गया तभी एक कन्या आई और गायों का दूध पीने लगी।

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Ghata Rani Mata Rajasthan: यह देख ग्वाला कन्या की तरफ दौड़ने लगा। ऐसे में कन्या पहाड़ी की ओर दौड़ी और कन्या भूमि में समाहित होने लगी तभी कन्या की सिर की चोटी ग्वाले ने पकड़ ली और कन्या एक पत्थर बन गई। इसके बाद से इस स्थान पर घटारानी माता की पूजा की जाने लगी जो कि अब एक आस्था का केन्द्र बन गया। मान्यता है कि मंदिर के पट अष्टमी को मंगला आरती के बाद खुलते हैं। कहते हैं कि जो भक्त सच्चे मन से माता के दर्शन करने आते हैं, उनकी सारी मनोकामना पूरी हो जाती है।

 

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