मुंबई, 31 जनवरी (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय की तीन या अधिक न्यायाधीशों वाली एक बड़ी पीठ जल्द ही यह तय करेगी कि क्या गिरफ्तारी के आधार के बारे में आरोपी व्यक्ति को लिखित रूप में सूचित किया जाना चाहिए और क्या गिरफ्तारी से पहले कोई पूर्व सूचना जारी की जानी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि इन प्रक्रियात्मक बिंदुओं पर ‘‘पूरी तरह से भ्रम’’ है और कभी-कभी जघन्य अपराधों के आरोपी जमानत हासिल करने के लिए स्पष्टता की कमी का फायदा उठाते हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 50 के तहत पुलिस को गिरफ्तारी के समय किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी का आधार बताना होता है।
सीआरपीसी की धारा 41ए के अनुसार, पुलिस किसी आरोपी को नोटिस जारी कर सकती है, उसे अपने सामने पेश होने और बयान दर्ज करने के लिए कह सकती है, और वह उस व्यक्ति को तब तक गिरफ्तार नहीं करेगी जब तक कि उसे यह न लगे कि यह आवश्यक है।
न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति एस एम मोदक की खंडपीठ ने विभिन्न याचिकाओं में आए इन मुद्दों को बड़ी पीठ के पास भेज दिया।
इन मामलों में गिरफ़्तारियां सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के लागू होने से पहले की गई थीं। इसलिए, बड़ी पीठ यह भी तय करेगी कि ये प्रावधान कब तक अनिवार्य थे और इसकी ‘कट-ऑफ’ तारीख भी तय की जाएगी।
इन सभी मामलों में, याचिकाकर्ताओं ने गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए रिहाई की मांग की थी और कहा था पुलिस ने धारा 50 या 41ए का पालन नहीं किया था।
पीठ ने कहा कि इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
इसने निर्देश दिया कि आदेश को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए जो एक बड़ी पीठ का गठन करेंगे।
भाषा नेत्रपाल संतोष
संतोष
Follow us on your favorite platform:
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)