मुंबई, नौ अक्टूबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने एक झुग्गी बस्ती क्षेत्र में अतिरिक्त शौचालय की व्यवस्था करने के प्रति बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के ‘‘असहयोगी और असंवेदनशील’’ रवैये की निंदा की और कहा कि यह कार्य करना नगर निकाय का संवैधानिक दायित्व है।
न्यायमूर्ति एम एस सोनक और न्यायमूर्ति कमल खता की पीठ ने चार अक्टूबर को बीएमसी को 15 दिनों के भीतर क्षेत्र में अस्थायी शौचालय ब्लॉक की व्यवस्था करने और तीन महीने में अतिरिक्त स्थायी ब्लॉक का निर्माण करने का निर्देश दिया।
यह आदेश उपनगरीय सांताक्रूज के कलिना स्थित झुग्गी बस्ती के कुछ निवासियों द्वारा दायर याचिका पर पारित किया गया। याचिका में बीएमसी को पुरुषों और महिलाओं के लिए पर्याप्त शौचालय की व्यवस्था करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया।
याचिका में दावा किया गया कि वर्तमान में इलाके में शौचालयों की भारी कमी है। याचिका के अनुसार, इलाके में करीब 1,600 लोग रहते हैं, लेकिन केवल 10 शौचालय ब्लॉक हैं। इनमें पुरुषों के लिए छह और महिलाओं के लिए चार ब्लॉक हैं।
पीठ ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण मामला है और ये 10 शौचालय ब्लॉक निवासियों के लिए अपर्याप्त हैं।
बीएमसी ने पिछले वर्ष अदालत को बताया था कि वह अतिरिक्त शौचालयों का निर्माण करेगी, लेकिन चूंकि भूमि का कुछ हिस्सा महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) का है, इसलिए इसके लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) की आवश्यकता होगी।
हालांकि, म्हाडा ने अदालत को बताया कि उसने 2023 में ही अनापत्ति प्रमाण पत्र दे दिया था और अदालत को आश्वासन दिया था कि वह नगर निकाय को हरसंभव सहायता प्रदान करेगा।
अदालत ने बीएमसी के झूठे और भ्रामक बयानों पर अपनी नाराजगी व्यक्त की कि शौचालयों का निर्माण नहीं किया जा सकता क्योंकि म्हाडा ने अभी तक एनओसी जारी नहीं की है। अदालत ने कहा, ‘‘म्हाडा के हलफनामे और उसके साथ एनओसी के बाद, बीएमसी का पूरा दृष्टिकोण अपने वैधानिक और संवैधानिक दायित्वों से बचने के लिए और अधिक अवरोधक ढूंढना है।’’
पीठ ने कहा कि बीएमसी की दिलचस्पी सिर्फ अतिरिक्त समस्याओं को खोजने में है, जिससे निवासियों को शौचालय जैसी जरूरी चीजों से वंचित रहना पड़ा। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘हमें अफसोस के साथ कहना पड़ रहा कि आपका रवैया बेहद असहयोगी और असंवेदनशील है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि वह बीएमसी के इस रवैये से काफी आश्चर्यचकित है कि उसने पहले तो म्हाडा पर दोष मढ़कर अदालत को गुमराह किया और फिर अपने संवैधानिक दायित्वों के अनुपालन से बचने के लिए तमाम बाधाएं खड़ी कीं।
अदालत ने कहा, ‘‘बीएमसी को इस देश का सबसे अमीर नगर निगम माना जाता है। इसलिए, वित्तीय कमी का हवाला देना कोई विकल्प नहीं है।’’ उच्च न्यायालय ने मामले में उसके समक्ष पेश हुए बीएमसी अधिकारी के बर्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वह समाधान के बजाय केवल समस्याएं खोजने में रुचि रखते हैं।
उच्च न्यायालय ने बीएमसी को प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई 14 नवंबर के लिए स्थगित कर दी।
भाषा आशीष माधव
माधव
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