नांदेड़ विस्फोट : अदालत ने कहा-अभियोजन पक्ष ने आरोपियों को फंसाने की कोशिश की |

नांदेड़ विस्फोट : अदालत ने कहा-अभियोजन पक्ष ने आरोपियों को फंसाने की कोशिश की

नांदेड़ विस्फोट : अदालत ने कहा-अभियोजन पक्ष ने आरोपियों को फंसाने की कोशिश की

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Modified Date: January 8, 2025 / 06:25 PM IST
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Published Date: January 8, 2025 6:25 pm IST

मुंबई, आठ जनवरी (भाषा) महाराष्ट्र की एक अदालत ने नांदेड़ विस्फोट मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) से संबंध रखने के आरोपी नौ लोगों को बरी करते हुए कहा कि केवल कुछ दक्षिणपंथी समूहों से जुड़े साहित्य और संचार की बरामदगी को आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने की साजिश नहीं माना जा सकता।

नांदेड़ जिला और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सीवी मराठे ने यह भी कहा कि विस्फोट स्थल से बमों की बरामदगी का अभियोजन पक्ष का दावा आरोपियों को फंसाने के लिए ‘गढ़ी गई एक कहानी’ था, जो अपराध साबित करने में बुरी तरह नाकाम रहा।

बचाव पक्ष ने दलील दी थी कि यह मामला ‘हिंदू आतंकवाद को चित्रित करने के लिए झूठे आरोप लगाने का एक शानदार उदाहरण’ था।

चार और पांच अप्रैल 2006 की दरमियानी रात को नांदेड़ शहर में लक्ष्मण राजकोंडवार के घर पर एक विस्फोट हुआ, जो कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता था।

जांचकर्ताओं ने दावा किया था कि लक्ष्मण राजकोंडवार का बेटा नरेश और विहिप कार्यकर्ता हिमांशु पांसे कथित तौर पर विस्फोटक उपकरण बनाते समय हुए विस्फोट में समय मारे गए।

विस्फोट के आरोपियों को बरी करने से जुड़े चार जनवरी के फैसले की उसके आधार सहित प्रति बुधवार को उपलब्ध कराई गई।

न्यायाधीश ने कहा कि आरोप पत्र में आरोप लगाया गया है कि आरोपी व्यक्ति आरएसएस, विहिप और बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों से जुड़े हुए थे।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज पेश नहीं किया कि उक्त संगठनों में से किसी को केंद्र सरकार की ओर से ‘आतंकवादी संगठन’ के रूप में अधिसूचित किया गया था।’’

न्यायमूर्ति मराठे ने कहा, ‘‘इसलिए, केवल ऐसे संगठनों से जुड़ा साहित्य, डायरी और संचार की बरामदगी को किसी साजिश का हिस्सा या आरोपी व्यक्तियों द्वारा आतंकवादी संगठन की सहायता नहीं माना जा सकता।’’

आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीली), विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे।

मामले की जांच तीन एजेंसियों-स्थानीय पुलिस स्टेशन (भाग्यनगर), आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) और केंद्रीय अन्वेशण ब्यूरो (सीबीआई) ने की थी।

आरोप पत्र में कहा गया था कि आरोपियों ने धार्मिक समुदायों के बीच दरार पैदा करने के इरादे से विभिन्न धार्मिक स्थानों पर विस्फोट करने के लिए बम बनाने की साजिश रची थी।

इसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत पैदा की और उन्हें पुणे में एक फरार आरोपी ने पाइप बम तैयार करने का प्रशिक्षण दिया था।

अभियोजन पक्ष ने कहा था कि चूंकि, उसने जांच के माध्यम से विस्फोट की साजिश की पुष्टि की है, इसलिए आरोपियों को दंडित किया जाना चाहिए।

हालांकि, बचाव पक्ष ने दलील दी थी कि यह मामला ‘हिंदू आतंकवाद को चित्रित करने के लिए झूठे आरोप लगाने का एक शानदार उदाहरण’ था।

अदालत ने कहा कि घटनास्थल का दौरा करने वाले पहले पुलिस अधिकारी (भाग्यनगर पुलिस थाने से जुड़े) द्वारा दिए गए साक्ष्य से पता चलता है कि उन्हें शुरू में संदेह था कि घर में पटाखों के लापरवाही से भंडारण के कारण विस्फोट हुआ।

उसने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि प्राथमिकी में गवाह ने साफ तौर पर कहा है कि पटाखे लापरवाही से सोफे के नीचे रखे गए थे।

अदालत ने कहा, ‘‘इसका मतलब यह है कि मामला दर्ज कराने से पहले उन्होंने घर की तलाशी ली थी और उन्हें सोफे के नीचे सिर्फ पटाखे मिले थे। यह अभियोजन पक्ष के दावे को खारिज करता है कि विस्फोट के समय सोफे के नीचे एक जीवित बम रखा गया था।’’

अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि शुरुआती तलाशी के दौरान खोजी कुत्तों को कोई आपत्तिजनक वस्तु नहीं मिली थी।

उसने कहा कि एक अन्य गवाह ने बताया कि विस्फोट के तुरंत बाद दमकल विभाग को बुलाया गया और पानी के छिड़काव से आग पर काबू पाया गया। उसने बताया कि घर के कमरे और फर्श गीला था।

गवाह के बयान का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि भले ही दमकल विभाग द्वारा पानी के छिड़काव के कारण पूरा घर गीला हो गया था, लेकिन कथित तौर पर पाइप बम वाला रेक्सिन बैग भीगा नहीं था।

अदालत ने कहा कि जब रेक्सिन बैग बरामद किया गया, तो उसके जलने का कोई संकेत नहीं था, जबकि विस्फोट की तीव्रता को देखते हुए यह वास्तव में असंभव है और दोनों पहलू अभियोजन की कहानी के खिलाफ हैं।

उसने कहा, ‘‘ये परिस्थितियां कथित अपराधों में आरोपी व्यक्तियों की सक्रिय भूमिका दिखाने के लिए एक कहानी गढ़े जाने की ओर इशारा करती हैं।’’

आरोपियों के खिलाफ यूएपीए के तहत आरोप लगाए जाने पर अदालत ने कहा कि ‘‘उस संबंध में अभियोजन पक्ष के गवाहों के सबूत पूरी तरह से अविश्वसनीय हैं।’’

रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सामग्री और सबूतों पर विचार करने के बाद अदालत ने फैसला सुनाया कि ‘अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई भी अपराध सिद्ध करने में बुरी तरह नाकाम रहा है।’

भाषा पारुल नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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