मोहम्मद रफी शीतल पेय पदार्थ पीकर रिकॉर्ड करते थे गाना: शाहिद रफी |

मोहम्मद रफी शीतल पेय पदार्थ पीकर रिकॉर्ड करते थे गाना: शाहिद रफी

मोहम्मद रफी शीतल पेय पदार्थ पीकर रिकॉर्ड करते थे गाना: शाहिद रफी

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Modified Date: December 23, 2024 / 09:18 PM IST
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Published Date: December 23, 2024 9:18 pm IST

(कोमल पंचमटिया)

मुंबई, 23 दिसंबर (भाषा) सदाबहार गायक मोहम्मद रफी के बेटे शाहिद रफी ने कहा कि भले ही अन्य गायकों को गला खराब होने की फिक्र होती हो, लेकिन उनके पिता दोपहर के भोज के बाद शीतल पेय पदार्थ पीकर गाना रिकॉर्ड कराने के लिए स्टूडियो जाते थे।

शाहिद ने यह भी कहा कि रफी साधारण रुचि वाले शख्स थे और उन्हें सामाजिक मेलजोल ज्यादा पसंद नहीं था और वह फिल्मी पार्टी के बजाय अपने बच्चों के साथ कैरम खेलना पसंद करते थे।

बॉलीवुड के दिग्गज अदाकार दिलीप कुमार से लेकर शम्मी कपूर और अमिताभ बच्चन से लेकर ऋषि कपूर तक के लिए पार्श्व गायन करने वाले रफी की 24 दिसंबर को 100वीं जयंती है। पांच हजार से ज्यादा गीतों को अपनी आवाज़ देने वाले रफी संगीत की असाधारण किंवदंती थे।

हालांकि अपने परिवार के लिए वह एक सरल, मृदुभाषी व्यक्ति रहे, जिन्होंने बॉलीवुड की चकाचौंध से दूर शांत जीवन चुना।

शाहिद ने ‘पीटीआई-भाषा‘ को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘ वह एक बेहतरीन गायक थे, उनकी आवाज़ अलग थी। यह मखमली थी। वह एक बेहतरीन इंसान और पिता थे। वह बहुत ही मृदुभाषी थे… जब भी मेरे पिता बोलते थे, हमें ध्यान से सुनना पड़ता था।”

उन्होंने कहा, “ हम सभी (बच्चे) रफी साहब को एक पिता के रूप में देखते थे। हम उनका सम्मान एक पिता के रूप में करते थे, न कि एक गायक के रूप में। मेरे पिता अक्सर हमसे कहा करते थे, ‘मैं मोहम्मद रफी नहीं हूं, मैं तुम्हारा पिता हूं’।’’

रफी की सात संतानों में 63 वर्षीय शाहिद सबसे छोटे बेटे हैं और वह भी गायक हैं तथा मंचों पर प्रस्तुति देते हैं।

‘अभी ना जाओ छोड़ कर’ और ‘आजा, आजा’ जैसे सदाबहार हिट गीतों के गायक को जन्मदिन मनाना पंसद नहीं था और परिवार के सदस्य उनके लिए केक लाते थे।

शाहिद ने कहा, ‘‘बचपन में हम उनके लिए कुछ अच्छा करने की कोशिश करते थे, जैसे केक लाना। वह एक घरेलू शख्स थे, उन्हें सामाजिक मेलजोल ज्यादा पसंद नहीं था। उनका विचार था… ‘हमें जश्न मनाना चाहिए लेकिन हमें यह सोचना चाहिए कि हम वास्तव में मृत्यु के एक साल करीब आ गए हैं।’ उन्होंने कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया।’’

साल 1980 में अचानक दिल का दौरा पड़ने से रफी का निधन हो गया। वह सिर्फ 55 वर्ष के थे।

शाहिद बताते हैं कि उनके पिता खाने-पीने के बहुत शौकीन थे।

उन्होंने कहा, ‘‘दोपहर का भोजन करने के बाद वह शीतल पेय पदार्थ पीते थे और फिर रिकॉर्डिंग के लिए जाते थे। लोगों को अपना गला खराब होने की फिक्र होती थी, लेकिन मेरे पिता के पास तो कुदरती प्रतिभा थी।’’

शाहिद ने कहा, “ पिताजी के दोस्त तो थे लेकिन वह उन लोगों में से नहीं थे जो हर रोज़ अपने दोस्तों से मिलते थे। उन्हें सामाजिक मेलजोल ज्यादा पसंद नहीं था। वह घर आकर हमारे साथ समय बिताना पसंद करते थे। उन्हें पतंग उड़ाने का शौक था। वह हमारे साथ कैरम खेलते थे, इसके अलावा बांद्रा जिम में (अपने दोस्तों के साथ) बैडमिंटन भी खेलते थे। सप्ताहांत में हम लोनावला के घर जाते थे जहां उन्होंने एक तालाब बनाया था और वह हमारे साथ तैरते थे।”

रफी खुद चौथी कक्षा से आगे नहीं पढ़ सके थे और पिता के रूप में उदार थे, लेकिन जब बात अपने बच्चों की शिक्षा की आती थी तो वह सख्त अनुशासन वाले व्यक्ति थे। उनके पिता कभी-कभी चौपाटी में रियाज किया करते थे।

रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह गांव में एक पंजाबी जाट मुस्लिम परिवार में अल्लाह रखी और हाजी अली मोहम्मद के घर हुआ था। वह छह भाइयों में दूसरे नंबर के थे। परिवार लाहौर चला गया। वहां से, रफी पार्श्व गायन में अपना करियर बनाने के लिए तत्कालीन बंबई (अब मुंबई)आ गए।

भाषा

नोमान धीरज

धीरज

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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