मुंबई, 12 अगस्त (भाषा) महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय को सूचित किया कि कानून के अनुसार, राज्य की किसी भी जेल में कैदी को एकांत में रखने की व्यवस्था नहीं है, लेकिन जघन्य अपराधों के दोषी कैदियों को अलग रखा जाता है।
लोक अभियोजक हितेन वेनेगांवकर ने न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की एक पीठ को बताया कि बम धमाके जैसे जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को अन्य कैदियों से अलग रखा जाता है।
अदालत 2010 के पुणे धमाके के दोषी हिमायत बेग की ओर से दाखिल एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बेग ने दावा किया था कि उसे पिछले 12 साल से नासिक केंद्रीय कारागार में एकांत में रखा गया है और उसने स्थानांतरित करने का अनुरोध किया। उसे मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।
वेनेगांवकर ने अदालत को बताया कि किसी भी जेल में कैदी को एकांत में नहीं रखा जाता। उन्होंने अदालत को बताया, ‘‘फिलहाल, हम एकांत कारावास का पालन बिल्कुल नहीं करते हैं। हम केवल धमाकों जैसे गंभीर और जघन्य अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए दोषियों को अन्य दोषियों से अलग रखते हैं।’’
उन्होंने कहा कि एकांत में रखने और अन्य दोषियों से अलग रखे जाने में अंतर है।
वेनेगांवकर ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 11 के अनुसार, केवल वह अदालत जिसने आरोपी को दोषी ठहराया हो और उसे सजा सुनाई हो, उसे कैदी को एकांत कारावास में रखने का आदेश देने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि साथ ही कैदी को तीन महीने से अधिक समय तक एकांत कारावास में नहीं रखा जा सकता।
पीठ ने वेनेगांवकर को इस संबंध में एक संक्षिप्त हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की।
बेग फरवरी 2010 में पुणे के लोकप्रिय भोजनालय जर्मन बेकरी में हुए विस्फोट में दोषी ठहराया जाने वाला एकमात्र व्यक्ति था, जिसमें 17 लोगों की जान चली गई थी और 60 अन्य घायल हो गए थे।
इस मामले में यासीन भटकल सहित छह अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया है जो अभी भी फरार है।
भाषा धीरज अमित
अमित
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