उच्च न्यायालय ने मां की हत्या करने, अंगों को खाने के दोषी को सुनाये गए मृत्यु दंड की पुष्टि की |

उच्च न्यायालय ने मां की हत्या करने, अंगों को खाने के दोषी को सुनाये गए मृत्यु दंड की पुष्टि की

उच्च न्यायालय ने मां की हत्या करने, अंगों को खाने के दोषी को सुनाये गए मृत्यु दंड की पुष्टि की

:   Modified Date:  October 1, 2024 / 04:39 PM IST, Published Date : October 1, 2024/4:39 pm IST

मुंबई, एक अक्टूबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने 2017 में अपनी मां की हत्या करने और उसके शरीर के कुछ अंगों को कथित तौर पर खाने को लेकर कोल्हापुर की एक अदालत द्वारा दोषी को सुनाए गए मृत्यु दंड की मंगलवार को पुष्टि की तथा कहा कि यह नरभक्षण का मामला है।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की एक खंडपीठ ने कहा कि यह दोषी सुनील कुचकोरवी की फांसी की सजा की पुष्टि करती है। पीठ के अनुसार, दोषी में सुधार की कोई संभावना नहीं है।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘यह मामला दुर्लभतम श्रेणी में आता है। दोषी ने न केवल अपनी मां की हत्या की, बल्कि उसने उसके शरीर के अंगों – मस्तिष्क, हृदय, यकृत, गुर्दे, आंत को भी निकाल लिया और उन्हें एक बर्तन में पका रहा था।’’

खंडपीठ ने कहा, ‘‘उसने उसकी पसलियां पकाई थीं और उसका हृदय भी पकाने वाला था। यह नरभक्षण का मामला है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि दोषी के सुधरने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि नरभक्षण करने की प्रवृत्ति होती है।

खंडपीठ ने कहा, ‘‘अगर उसे आजीवन कारावास की सजा दी जाती है, तो वह जेल में भी इसी तरह का अपराध कर सकता है।’’

कुचकोरवी को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए फैसले की जानकारी दी गई।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, सुनील कुचकोरवी ने 28 अगस्त 2017 को कोल्हापुर शहर में अपने आवास पर अपनी 63 वर्षीय मां यल्लमा रमा कुचकोरवी की नृशंस हत्या कर दी थी।

बाद में, उसने शव के टुकड़े किए और कुछ अंगों को कड़ाही में तलकर खा लिया।

अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि आरोपी की मां ने उसे शराब खरीदने के लिए पैसे देने से इनकार कर दिया था।

सुनील कुचकोरवी को 2021 में कोल्हापुर की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। वह यरवदा जेल (पुणे) में बंद है।

सत्र अदालत ने उस समय कहा था कि यह मामला ‘‘दुर्लभतम’’ श्रेणी में आता है और इस जघन्य हत्या ने सामाजिक चेतना को झकझोर कर रख दिया है।

दोषी ने अपनी दोषसिद्धि और मृत्युदंड को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी।

भाषा सुभाष मनीषा

मनीषा

 

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