Bombay High Court sets aside the conviction of a 28-year-old man

‘बिना गलत इरादे से पीठ और सिर पर हाथ फेरने से लड़की की लज्जा भंग नहीं होती’, अदालत ने रद्द की दोषी की सजा

'बिना गलत इरादे से पीठ और सिर पर हाथ फेरने से लड़की की लज्जा भंग नहीं होती', Bombay High Court sets aside the conviction of a 28-year-old man

Edited By :  
Modified Date: March 14, 2023 / 12:32 PM IST
,
Published Date: March 14, 2023 11:33 am IST

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने 28 वर्षीय एक व्यक्ति की दोषसिद्धी रद्द करते हुए कहा कि किसी गलत नीयत के बिना नाबालिग लड़की की पीठ और सिर पर केवल हाथ फेर देने से उसकी लज्जा भंग नहीं होती। मामला 2012 का है, जब 18 साल के व्यक्ति पर 12 साल की एक लड़की की लज्जा भंग करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।

Read More : CG assembly budget session : ’15 सालों में स्कूली शिक्षा का जो बेड़ा गर्क किया है, उसे हम ठीक कर रहे हैं’ सदन में गरजे स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम

पीड़िता के मुताबिक, आरोपी ने उसकी पीठ और सिर पर हाथ फेरते हुए कहा था कि वह बड़ी हो गई है। अदालत ने 10 फरवरी को मामले में फैसला सुनाया, जिसकी प्रति 13 मार्च को उपलब्ध हुई। न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने दोषसिद्धी रद्द करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता कि दोषी का कोई गलत इरादा था, बल्कि उसकी बात से लगता है कि वह पीड़िता को बच्ची के तौर पर ही देख रहा था।

Read More : बीच बाजार में लड़कियों के बीच जमकर चले लात-घूंसे, लड़ाई की पहले से कर रखी थी तैयारी, इस बात पर हुआ झगड़ा

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के लिए, किसी का उसकी लज्जा भंग करने की मंशा रखना महत्वपूर्ण है…।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ 12-13 वर्ष की पीड़िता ने भी किसी गलत इरादे का उल्लेख नहीं किया। उसने कहा कि उसे कुछ अनुचित हरकतों की वजह से असहज महसूस हुआ।’’ अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि अपीलकर्ता की मंशा लड़की की लज्जा भंग करने की थी।

Read More : MP विधानसभा में गूंजा BBC का मुद्दा, निंदा प्रस्ताव पारित होने पर विपक्ष ने जताई आपत्ति 

अभियोजन पक्ष के अनुसार, 15 मार्च 2012 को अपीलकर्ता 18 वर्ष था और वह कुछ दस्तावेज देने लड़की के घर गया था। लड़की उस समय घर अकेली थी। उसने लड़की के सिर और पीठ पर हाथ फेरा जिससे वह घबराकर मदद के लिए चिल्लाने लगी। निचली अदालत द्वारा मामले में दोषी ठहराने और छह महीने की सजा सुनाने के बाद व्यक्ति ने उच्च न्यायालय का रुख किया था। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत का फैसला उचित नहीं था और प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि व्यक्ति ने बिना किसी गलत नियत के, बिना सोचे समझे वह आचरण किया।