मुंबई, 25 सितंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बदलापुर के एक स्कूल से संबंधित यौन शोषण के मामले में निर्देश दिए जाने के बावजूद बाल सुरक्षा समिति गठित नहीं करने के लिए महाराष्ट्र सरकार के प्रति बुधवार को नाराजगी प्रकट की।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने कहा कि सरकार की कथनी और करनी में फर्क है। अदालत ने कहा कि इससे आपकी विश्वसनीयता का पता चलता है।
पीठ ने कहा कि बाल सुरक्षा समिति को बैठक कर मामले पर चर्चा करके स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी अनुशंसाओं के बारे में आठ सप्ताह में रिपोर्ट सौंपनी थी।
उच्च न्यायालय ने पिछले महीने बदलापुर में एक स्कूल के शौचालय में एक पुरुष कर्मचारी द्वारा दो नाबालिग लड़कियों के कथित यौन उत्पीड़न से संबंधित मामले का स्वत: संज्ञान लिया है।
आरोपी अक्षय शिंदे 23 सितंबर को पुलिस हिरासत में गोलीबारी के दौरान मौत हो गई।
पीठ ने न्यायमूर्ति साधना जाधव और न्यायमूर्ति शालिनी फणसलकर-जोशी (सेवानिवृत्त), सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी मीरान बोरवंकर, शिक्षा पेशेवरों सुचेता भावलकर और जयवंती बबन सावंत, मनोचिकित्सक डॉ. हरीश शेट्टी, और महाराष्ट्र एवं गोवा में आईसीएसई और आईएससी प्री-स्कूल के अध्यक्ष ब्रायन सेमुर की एक समिति गठित करने और 29 अक्टूबर तक एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
अदालत ने बुधवार को सरकारी वकील हितेन वेनेगांवकर से कहा कि सरकार ने अब तक समिति के किसी भी सदस्य से संपर्क नहीं किया है।
अदालत ने कहा, ‘‘राज्य सरकार ने समिति के किसी भी सदस्य से बात नहीं की है। आपकी कथनी और करनी में फर्क है।’’
पीठ ने सवाल किया कि सरकार कैसे उम्मीद करती है कि समिति अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी और सौंपेगी।
अदालत ने कहा, ‘आप कैसे यह उम्मीद करते हैं कि समिति काम कर पाएगी? समिति केवल कागजों पर नहीं बननी चाहिए। हमने उस दिन जो कुछ भी कहा था, आपने उसपर सहमति जताई थी।”
वेनेगांवकर ने पीठ को बताया कि वह महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ से निर्देश लेंगे और अदालत में जवाब दाखिल करेंगे।
पीठ इस मामले पर एक अक्टूबर को सुनवाई कर सकती है।
भाषा जोहेब सुरेश
सुरेश
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